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गिलहरी आई
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कमलसिंह चौहान सुन्दर गिलहरी आई अनुशासन की सीख लाई दाने खा इठलाती आई नन्हे हाथ हिलाती आई थकती नहीं है चलने में सोती नहीं है पलने में दाने बीच उठाकर चलती मिट्टी में भी दबाती चलती हाथ-पैर इसके फुर्तीले पीठ पर पट्टे सफेद-काले हमें देखकर यह शरमाई पेड़ों पर चढ़कर इतराई लंबी दूरी तय करती है समझबूझ से यह चलती है चंचल और छरहरी आई देखो सुन्दर गिलहरी आई।