दीदी की चिट्ठी
तेज गाड़ी वाले...
प्यारे बच्चों, एक बार मैं पापा के साथ उनकी गाड़ी पर बैठकर बाजार गई। बाजार में बहुत सारी गाड़ियाँ धड़ाधड़ जा रही थीं। मैंने देखा कि दो भैया बहुत तेज गाड़ी चलाकर निकले और अचानक एक जगह गाड़ी संभाल नहीं पाए और गिर पड़े। उन दोनों को बहुत चोट आई। उनके घुटने फूट गए थे और उनसे खून भी बहुत निकल रहा था। आते-जाते लोगों ने उन्हें उठाया और सड़क से एक तरफ ले गए। उनकी गाड़ी में भी टूट-फूट हो गई थी। सभी बड़े लोगों ने उन दोनों को समझाया कि इतनी तेज गाड़ी नहीं चलाना चाहिए ज्यादा चोट भी लग सकती थी। वो दोनों चुपचाप सारी बात सुनते रहे और फिर धीरे-धीरे सब लोग अपने-अपने काम पर जाने लगे। मैंने देखा एक भैया की पेंट भी फट गई थी। मैंने पापा से पूछा कि पापा वे इतनी तेज गाड़ी क्यों चला रहे थे तो पापा ने कुछ नहीं कहा। मुझे यह नहीं मालूम चला कि आखिर वे गाड़ी तेज क्यों चला रहे थे? तो बच्चों, क्या तुम भी सड़क पर इतनी ही तेज गति से अपनी साइकिल लेकर तो नहीं दौड़ते। अगर दौड़ते भी हो तो अब अपने इस दौड़ पर विराम लगा दो। क्योंकि पता नहीं कब एक्सीडेंट हो जाए और लेने के देने पड़ जाएँ। तो ध्यान रखोगे ना मेरी बात को...। वैसे क्या तुम्हें पता है कि वे इतनी तेज गाड़ी क्यों चला रहे थे। अगर पता चले तो आप मुझे अवश्य बताएँ। आपकी दीदी