गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025
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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 8 अक्टूबर 2025 (18:09 IST)

Karva Chauth 2025: क्या कुंवारी लड़कियां रख सकतीं करवाचौथ का व्रत, जानिए क्या हैं शास्त्रों में लिखे नियम

Karva Chauth
Karwa Chauth Vrat Ke Niyam: करवा चौथ का त्योहार भारतीय संस्कृति में अखंड सौभाग्य और पातिव्रत्य धर्म का प्रतीक है। यह मूल रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए रखा जाता है। हालांकि, आधुनिक समय में यह चलन काफी बढ़ गया है कि कुंवारी लड़कियां भी अपने होने वाले पति या प्रेमी के लिए यह व्रत रखने लगी हैं। क्या धर्मशास्त्र इस अभ्यास की अनुमति देते हैं, और अगर हां, तो इसके लिए नियम क्या हैं?

धर्मशास्त्रों में कुंवारी कन्याओं के लिए क्या कहा गया है: अधिकांश धर्मशास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार, करवा चौथ का व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए निर्दिष्ट है। इसका मूल आधार है पातिव्रत्य धर्म का पालन करना, जो विवाह के बाद ही संभव होता है।

पातिव्रत्य धर्म का अर्थ: 'पातिव्रत्य' शब्द 'पति' और 'व्रत' से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है पति के प्रति निष्ठा, समर्पण, और कर्तव्य का पालन करना। यह धर्म विवाहित महिलाओं की निष्ठा और पति के प्रति उनके कर्तव्य को दर्शाता है। चूंकि विवाह से पहले यह धर्म पूरी तरह से लागू नहीं होता है, इसलिए यह कहा जाता है कि कुंवारी लड़कियों को करवा चौथ का कठोर निर्जला व्रत रखने से बचना चाहिए। शास्त्रों में यह स्पष्ट कहा गया है कि कुंवारी कन्याओं के लिए यह व्रत रखना आवश्यक नहीं होता है।

बदलते समय और लोक-परंपराओं के प्रभाव के कारण, कई स्थानों पर अब कुंवारी कन्याएं भी दो मुख्य उद्देश्यों से यह व्रत रखती हैं:
  • मनपसंद जीवनसाथी की कामना: अविवाहित कन्याएं माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करके उनसे मनचाहा और आदर्श जीवनसाथी प्राप्त करने की कामना करती हैं। माता पार्वती ने भी शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी।
  • सगाई या भावी पति के लिए: जिनकी सगाई हो चुकी है या जो विवाह बंधन में बंधने वाली हैं, वे अपने भावी पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं।
 
अगर कुंवारी लड़कियां यह व्रत रखना चाहती हैं, तो उन्हें विवाहित महिलाओं जैसे कठोर नियम का पालन नहीं करना चाहिए। उनके लिए कुछ विशेष सरल नियम निर्धारित किए गए हैं:
  • व्रत का स्वरूप: कुंवारी कन्याएं निर्जला (बिना पानी) व्रत के बजाय, फलाहार या जल ग्रहण करके व्रत रख सकती हैं। उनके लिए पूरे दिन अन्न या जल न लेना अनिवार्य नहीं है।
  • पूजा विधि: उन्हें चंद्रमा को अर्घ्य देने की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि यह रस्म सुहाग से जुड़ी है। इसके बजाय, वे शाम को तारों को देखकर या छलनी का उपयोग किए बिना अपने माता-पिता के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत खोल सकती हैं।
  • श्रृंगार और रस्में: कुंवारी लड़कियों के लिए 16 श्रृंगार करना अनिवार्य नहीं है। उन्हें करवा बदलने या थाली घुमाने (फेरी लेने) जैसी रस्में नहीं करनी चाहिए। उन्हें सुहाग की वस्तुएं (जैसे सिंदूर, चूड़ी) उपहार में नहीं लेनी चाहिए।
 
यह व्रत मुख्यतः विवाहित जीवन की निष्ठा और समर्पण का पर्व है। जबकि धर्मशास्त्र कुंवारी लड़कियों के लिए इसे अनिवार्य नहीं मानते, मनचाहे जीवनसाथी की कामना या प्रेम के कारण इसे रखना अब एक सामाजिक चलन बन गया है। यदि आप यह व्रत रखती हैं, तो कठोर व्रत नियमों के बजाय, ऊपर बताए गए सरल नियमों का पालन करना ही उचित और शास्त्रसम्मत माना जाता है।

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