Karwa Chauth Vrat Katha: करवा चौथ का व्रत कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए रखती हैं। इस साल यह पर्व 10 अक्टूबर के दिन आ रहा है। करवा चौथ के दिन भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी और चंद्रमा की पूजा की जाती है। करवा चौथ की कथा का श्रवण किए बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है। सुहागिन महिलाओं द्वारा पूरे दिन रखा गया निर्जला व्रत तभी पूर्ण होता है जब वे पूरी आस्था के साथ व्रत की पौराणिक कथाओं को सुनती हैं। मान्यता है कि इन पवित्र कथाओं को सुनने से विवाहित महिलाओं को सीधे अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है। यह न केवल पति की दीर्घायु सुनिश्चित करता है, बल्कि दांपत्य जीवन को सुख, समृद्धि और अटूट प्रेम से भर देता है।
करवाचौथ व्रत की 3 कथाएं
अंधी बूढ़ी मां की व्रत कथा
एक अंधी बुढ़िया थी, जिसका एक लड़का और बहू थी। वह बहुत गरीब थी। वह अंधी बूढ़ी माई नित्य प्रतिदिन गणेशजी की पूजा और चौथ का व्रत करती थी। बूढ़ी माई की पूजा से प्रसन्न होकर एक दिन गणेशजी भगवान ने उसे दर्शन दिए और बोले कि माई तू रोज निस्वार्थ भाव से मेरी पूजा करती हैं जो चाहे सो मांग ले। बूढ़ी माई बोली, हे विध्नहर्ता गणेश जी भगवान मुझे तो मांगना नहीं आता सो क्या मांगू। तब गणेशजी भगवान बोले कि माई मैं कल आऊंगा तू अपने बहू-बेटे से पूछ कर मांग ले। तब बुढ़िया ने अपने बेटे बहू से पूछा तो बेटा बोला कि मां धन मांग ले और बहू ने कहा कि मां पोता मांग लो। बुढ़िया ने सोचा कि बेटा-बहू तो अपने-अपने मतलब की बातें कर रहे हैं।
अतः उस बुढ़िया ने पड़ोसिन से पूछा तो पड़ोसिन ने कहा कि बुढ़िया माई तेरी थोड़ी-सी जिंदगी बची है। तू क्यों तो मांगे धन और क्यों मांगे पोता, तू तो केवल अपने आंखे मांग ले, जिससे तेरा जीवन सुख से व्यतीत हो जाए। उस बूढ़ी माई ने बेटे, बहू तथा पड़ोसिन की बात सुनकर घर में जाकर सोचा, जिससे बेटा-बहू भी खुश हो जाए और मेरा भी भला हो वह भी मांग लूं। जब दूसरे दिन गणेशजी भगवान आए और बोले, बूढ़ी माई मांग ले।
गणेशजी भगवान के वचन सुनकर बूढ़ी माई बोली हे विघ्नहर्ता, अन्न देवो, धन देवो, निरोगी काया देवों,अमर सुहाग देंवो, दीदा गोढा देवो, सोने के कटोरे में पोते को दूध पीता देखू, अमर सुहाग देवो और समस्त परिवार को सुख देंवो आपके श्री चरणों में मुझे स्थान देवो।
बुढ़िया की बात सुनकर गणेशजी बोले- बुढ़िया मां तूने तो मुझे ठग लिया। और कहती हैं की मांगना नहीं आता , जो कुछ तूने मांग लिया वह सभी तुझे मिलेगा। यूं कहकर गणेशजी भगवान अंतर्ध्यान हो गए। हे गणेशजी भगवान जैसा बुढ़िया माई को दिया वैसा सबको देना , वैसे ही सबको देना और सभी पर अपनी कृपा बनाये रखना।
साहूकार के सात बेटों और सात बेटियों की व्रत कथा
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे साहूकारनी के साथ उसकी बहुओं और बेटी ने चौथ का व्रत रखा था। चौथ का व्रत में चांद देखकर ही व्रत खोलते है। रात को जब साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोल सकती है और कुछ खा सकती है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से बहन को दिखाता है, छलनी की ओट में रखा दीपक चांद की तरह लगता है। ऐसे में वो ऐसा लगता है जैसे चतुर्थी का चांद हो। बहन ने अपनी भाभी से भी कहा कि चंद्रमा निकल आया है व्रत खोल लें, लेकिन भाभियों ने उसकी बात नहीं मानी और व्रत नहीं खोला।
बहन को अपने भाईयों की चतुराई समझ में नहीं आई और उसे देख कर करवा उसे अर्घ्य देकर खाने का निवाला खा लिया। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है। उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ।
व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण माता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर वह निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही।
उसने पूरे साल की चतुर्थी को व्रत किया और अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो जिसके फलस्वरूप करवा माता और गणेश जी के आशीर्वाद से उसका पति पुनः जीवित हो गया। जैसे गणपति और करवा माता ने उसकी सुनी, वैसे सभी की सुनें, सभी का सुहाग अमर हो।
करवा चौथ की धोबिन की व्रत कथा
करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा।। करवा।। कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा। पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची।
उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और बोली- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए हैं। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें। करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूंगी। करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया। तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
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