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Written By WD Feature Desk
Last Modified: गुरुवार, 22 अगस्त 2024 (15:09 IST)

दही हांडी का त्योहार कब मनाया जाता है, क्या है इसका इतिहास

Dahi Handi Festival
Krishna Janmashtami 2024: प्रतिवर्ष भाद्रपद की कृष्‍ण नवमी को मुंबई और गोवा में दही हांडी उत्सव मनाया जाता है। यह त्योहार कृष्‍ण जन्माष्टमी के एक दिन बाद मनाते हैं। यह एक प्रकार की खेल प्रतियोगिता है। इस बार 27 अगस्त 2024 सोमवार के दिन यह उत्सव रहेगा। मुंबई और गोवा के अलावा और भी कई क्षेत्रों में इस उत्सव का आयोजन किया जाता है।ALSO READ: कृष्‍ण जन्माष्टमी पर इस बार बन रहे हैं वही द्वापर युग वाले दुर्लभ योग जो बने थे 5251 वर्ष पहले
 
इतिहास : भगवान श्रीकृष्‍ण अपने बचपन में वृंदावन में रहते थे। यह स्थान उनकी बाल लीलाओं का स्थान है। यहां पर वे ब्रजवासियों के यहां अपने मित्रों के साथ माखन चोरी करके खाते थे। जब यह बात वहां की महिलाओं को पता चली तो वे अपनी माखन की मटकी को छत से लटकाकर रखने लगी। यह देखकर बालकृष्ण ने एक युक्ति अपनाई और वे अपने सखाओं के साथ मानव पर्वत बनानकर हांडी से दही और माखन चुराना प्रारंभ कर दिया। भगवान कृष्ण की दही चुराने की यह बाल लीला अब भारतीय लोककथा और कला का अभिन्न हिस्सा बन गई। तभी से दही हांडी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाने लगा। जो ग्रुप इस हांडी को फोड़ देता है उसको इनाम मिलता है।ALSO READ: krishna janmashtami 2024: श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर इस बार बन रहे हैं दुर्लभ योग, इन राशियों को मिलेगा आशीर्वाद
 
गोविन्दा आला रे! - यह जय-घोष समय के साथ दही-हाण्डी उत्सव की पहचान बन चुका है।
 
दही हांडी प्रतियोगिता : मुंबई और गोवा में दही-हाण्डी प्रतियोगिता का आयोजन होता है। महाराष्ट्र में दही-हाण्डी उत्सव को गोपालकाला के नाम भी जाता जाता है। प्रति वर्ष युवाओं की सैकड़ों टोलियाँ दही-हाण्डी प्रतिस्पर्धा में भाग लेती हैं। दही-हाण्डी की प्रतियोगिता को अधिक चुनौतीपूर्ण बनाने के लिए हाण्डी को भूमि से कई फीट ऊपर किसी खुले स्थान अथवा चौराहे पर बांधा जाता है। युवाओं के दही-हाण्डी तक पहुंचने के प्रयासों को लड़कियां पानी अथवा कोई चिकना पदार्थ डालकर विफल करने का प्रयास करती हैं। उल्लेखनीय है कि हाल के वर्षों में दही-हाण्डी प्रतियोगिता की पुरुस्कार राशि 1 करोड़ भारतीय रुपयों तक पहुंच चुकी है।ALSO READ: Janmashtami Aarti : जन्माष्टमी विशेष, भगवान श्री कृष्ण की आरती
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॥ अथ श्री कृष्णाष्टकम् ॥