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Written By WD

सामायिक का महत्‍व, लाभ एवं विधि

सामायिक का महत्‍व, लाभ एवं विधि -
WD

दोहा- लाख खंडी सोनातणी, लाख वर्ष दे दान।
सामायिक तुल्‍य नहीं, कहा ग्रन्‍थ दरम्‍यान ।1।

दिवसे-दिवसे लक्‍खं, देई सुवण्‍णस्‍स खंडियं एगो।
एगो पुण समाइयं, करइ, न पहुप्‍पए तस्‍स।2।

एक आत्‍मा प्रतिदिन लाख मुद्राओं का दान करती है और दूसरी मात्र दो घड़ी की शुद्ध सामायिक करती है, तो वह स्‍वर्ण मुद्राओं का दान करने वाली आत्‍मा, सामायिक करने वाले की समानता प्राप्‍त नहीं कर सकती। आर्त और रौद्र ध्‍यान को त्‍याग कर संपूर्ण सावद्य (पापमय) क्रियाओं से निवृत्त होना और एक मुहूर्त पर्यन्‍त मनोवृत्ति को समभाव में रखना- इसका नाम ‘सामायिक व्रत’ है।
  सामायिक मन को स्‍थिर रखने की अपूर्व क्रिया है, आत्‍मिक अपूर्व शांति प्राप्‍त करने का संकल्‍प है, परम पद पाने का सरल और सुखद मार्ग है। अखंडानंद प्राप्‍त करने का गुप्‍त मंत्र है, दु:ख समुद्र को तिरने का श्रेष्‍ठ जहाज है।      


सामायिक मन को स्‍थिर रखने की अपूर्व क्रिया है, आत्‍मिक अपूर्व शांति प्राप्‍त करने का संकल्‍प है, परम पद पाने का सरल और सुखद मार्ग है। अखंडानंद प्राप्‍त करने का गुप्‍त मंत्र है, दु:ख समुद्र को तिरने का श्रेष्‍ठ जहाज है। अनेक कर्मों से मलीन हुई आत्‍मा को परमात्‍मा बनाने का सामर्थ्‍य सामायिक क्रिया में ही है। यह क्रिया करने से आत्‍मा में रहे दुर्गुण नष्ट होकर, सद्गुण प्राप्‍त होते हैं और परम शांति का अनुभव होता है।

सामायिक के लाभ
1- सामायिक करने वाला, दो घड़ी के लिए समस्‍त पाप क्रियाओं का परित्‍याग कर देता है, जिससे उसके नए अशुभ कर्मों का बंधन बहुत रुक जाता है। उपरांत पुरानों की निर्जरा होती है तथा उत्तम पुण्‍यों का संचय होता है।
2- सामायिक से धार्मिक आत्‍म-गुणों का विकास होता है, क्‍योंकि उसमें अशुभ तथा अशुद्ध क्रियाओं के वर्जन और शुभ शुद्ध क्रियाओं के सेवन का शिक्षण = अभ्‍यास किया जाता है।
3- जैसे- जहाँ रानी मधुमक्‍खी बैठती है, वहाँ दूसरी मधुमक्‍खियाँ छत्ते को बाँधकर, मधु का संचय करती हैं। वैसे ही, सामायिक भी रानी मधुमक्‍खी के समान है। सामायिक की साधना प्रारंभ करने पर उसमें स्‍वाध्‍याय, जप, ध्यान, भावना आदि साधना के कई अंग गतिशील होते हैं और फिर उसमें भावरूप मधु का संचय होता है।

4- सामायिक धार्मिक-आध्‍यात्‍मिक व्‍यायामशाला के समान है, जिसमें आत्‍मा भाव-व्‍यायाम करके, अपने सद्गुणों को पुष्‍ट करता है।
5- सामायिक वस्‍तुत: ‘साधुत्‍व का पूर्व अभ्‍यास’ है। आत्‍मा को परमात्‍म-स्‍वरूप में रूपांतरण की प्रक्रिया ‘साधुत्‍व’ है। अत: यह बात सहज में ही सिद्ध हो जाती है कि सामायिक का सच्‍चा आराधक साधु-स्‍वरूप तथा परमात्‍मा-स्‍वरूप पाने के उपाय का सेवन कर रहा है।

6- एक भाई, व्‍याख्‍यान के बाद वक्‍तव्‍य में बोले - ‘मैं स्‍थानक में आया, सामायिक वाले भाई से टकरा गया’ तो क्रोध का प्रसाद पाया और सिनेमा हॉल में गया, वहाँ एक भाई से टकरा गया तो समता के बोल पाए।’ वस्‍तुत: यह चित्रण नहीं है। यह तो सामायिक वालों का उपहास है। कदाचित ऐसा सही हो भी, तो स्‍थानक और सिनेमा के प्रसंग विरले होंगे। परंतु हमें तो उस भाई के कथन से यह शिक्षा ही ग्रहण करना है कि हमारी सामायिक अधिक से अधिक निर्मल हो, वह उसका प्रभाव पूरे जीवन में व्‍याप्‍त हो जाए और जीवन समभाव से भावित बन जाए।

7- बूँद-बूँद से घड़ा भरने के समान एक सामायिक प्रतिदिन करने वालों की एक महीने में, एक अहोरात्रि और बारह महीने में बारह अहोरात्रि (दिन-रात) धर्म ध्यान में व्‍यतीत होती है। ऐसे 30 वर्ष में 360 दिन-रात आराधनामय हो जाते हैं।
8- एक सामायिक का फल- बानवे करोड़ उनसाठ लाख, पच्‍चीस हजार, नौ सौ पच्‍चीस पल्‍योपम से अधिक नारकी का आयुष्‍य क्षयकर देवता का अधिक शुभ आयुष्‍य उपार्जन होता है। 9- ‘एक शुद्ध सामायिक की दलाली सात स्‍वर्ण मेरु से बढ़कर है।’

एक सामायिक का मूल्‍य-
राजा श्रेणिक ने, भगवान महावीर से एक सामायिक का मूल्‍य पूछा, तो भगवान ने उत्तर दिया- ‘हे राजन् ! तुम्‍हारे पास जो चाँदी, सोना व जवाहर राशि हैं, उनकी थैलियों को ढेर यदि सूर्य और चाँद को छू जाएँ, फिर भी एक सामायिक का मूल्‍य तो क्‍या, उसकी दलाली भी पर्याप्‍त नहीं होगी।’

सामायिक की विधि- (अ)- लेने की विधि-
1)सामायिक के योग्‍य वेश = वस्‍त्रों को धारण करना
2) बैठने की भूति का पूँजनी से प्रमार्जन करना
3) आसन को अच्‍छी तरह देखकर बिछाना
4) मुखवस्‍त्रिका का प्रतिलेखन करके डोर से मुख बाँधना (आगे की विधि खड़े रहकर या पल्‍यंकासन-पलांठी से बैठकर करना)

(ब)- आगे के पाठों को क्रमानुसार बोलने की विधि-
1) नमोक्‍कार मंत्र
2) गुरुवंदना के पाठ से 3 बार वंदना
3) सम्‍यकत्व सूत्र
4) इरियावहिय सूत्र
5) कायोत्‍सर्ग प्रतिज्ञा (तस्‍स उत्तरी) सूत्र- (‘ताव कायं ठाणेणं’ तकि पाठ बोलने के बाद कायोत्‍सर्ग में बिलकुल मौन रूप से) दो लोगस्‍स तथा नमोक्कार मंत्र का ध्‍यान करना। फिर कायोत्‍सर्ग खोलकर, नमोक्‍कार मंत्र का ध्‍यान करना
6) कायोत्‍सर्ग-दोष-विशुद्धि का पाठ
7) चउवीसत्‍थव का पाठ, (लोगस्‍स)
8) सामायिक प्रतिज्ञा सूत्र से सामायिक लेना और
9) दो बार नमोत्‍थु णं (प्रणिपात सूत्र), नमोक्‍कार 3 बार।

(स)- सामायिक का काल स्‍वाध्‍याय, ध्‍यान आदि में व्‍यतीत करना।
(द)- पारने की विधि-
1) नमोक्‍कार मंत्र
2) वंदना
3) सम्‍यकत्‍व सूत्र
4) इरियावहिय सूत्र
5) तस्स उत्तरी सूत्र, कायोत्‍सर्ग में दो बार लोगस्‍स सूत्र, नमोक्‍कार मंत्र,
6) कायोत्‍सर्ग- दोष - विशुद्धि का पाठ
7) चउथीसत्‍थव- लोगस्‍स सूत्र
8) कायोत्‍सर्ग खोलकर नमोक्‍कर मंत्र
9) दो बार नमोत्‍थु णं
10) सामायिक पारने का पाठ एयस्‍स, नवमस्‍स और नमोक्‍कार मंत्र 3 बार।

साभार- सामायिक सूत्र