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महावीर की अहिंसा का दृष्टिकोण

- मुनिश्री चन्द्रप्रभ

Lord Mahavira | महावीर की अहिंसा का दृष्टिकोण
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महावीर की अहिंसा महज हिंसा पर अंकुश नहीं है, यह छोटे से छोटे प्राणी के लिए प्रेम और करुणा की जीवन-दृष्टि है। अहिंसा कोई नारा नहीं है। यह प्राणीमात्र में एक समग्र जीवन देखने का अंतरदर्शन है। अहिंसा विश्वधर्म की धुरी है। यह अध्यात्म का अनुष्ठान और मानवता की माँ है! एक अहिंसा से जुड़ना धर्म के समस्त पहलुओं से जुड़ जाना है। एक अहिंसा की इबादत समग्र इंसानियत की इबादत है। अहिंसा की पराकाष्ठा को छूना धर्म और अध्यात्म की ऊँचाई को छूना है।

अहिंसा मानवता की मुंडेर पर मोहब्बत का जलता हुआ चिराग है। अहिंसा न तो वर्तमान की देन है और न ही किसी व्यक्ति विशेष की विरासत है! इसके वर्तमान रूप को विकसित होने में हजारों-हजार वर्ष बीत चुके हैं। अहिंसा की शुरुआत में भले ही हिंसा और युद्ध की भूमिका रही हो, पर अहिंसा का उपसंहार सदैव शांति और अयुद्ध की घोषणा से ही हुआ है! लोगों ने लड़-मरकर भी अंततः यही जाना है कि शांति की स्थापना युद्ध और आतंक से नहीं बल्कि प्रेम, मैत्री और पारस्परिक सौहार्द से ही संभव है।

मानवता आज भी हिंसा और उग्रवाद से घिरी हुई है। विश्व की महानतम शक्तियों को भी अब इस बात का अहसास होने लगा है कि विश्व के अस्तित्व की रक्षा हिंसा से नहीं बल्कि अहिंसा से ही होगी। अहिंसा को अक्षुण्ण रखने के लिए सबको अपनी पवित्र आहुतियाँ देनी होंगी। आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, उन क्षणों में भी व्यक्ति विवेक कर रहा है। हमारा यह देश जो सारे विश्व के लिए महाशक्ति के रूप में है, यहाँ आतंकवादियों द्वारा क्रूर हमले किए जाने पर भी देश ने धैर्य बनाए रखा। यदि वह चाहता तो यहाँ बैठे-बैठे मिसाइल और रॉकेट दागकर दुश्मन के देश का सफाया कर सकता था।

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हमारा देश यह कतई नहीं चाहता कि किसी एक या कुछ उपद्रवी लोगों के कसूर की सजा हजारों बेकसूर व्यक्तियों को भुगताए और उन्हें भी मुसीबत में डाले! यहाँ कोशिश की जाती है कि अशांति के चौराहों से भी शांति की कोई गली खोज ली जाए। युद्ध की विभीषिका को टाला जा सके तो श्रेयस्कर है।

भगवान महावीर संपूर्ण विश्व में अहिंसा की उसी प्रकार प्रतिष्ठा करना चाहते हैं, जैसे आज हम भगवानों की प्रतिमाओं की किन्हीं मंदिरों में प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं। भगवान के अनुयायियों ने जितना पुरुषार्थ उनके जगह-जगह मंदिर बनाने में किया है, उसका आधा पुरुषार्थ भी यदि वे भगवान महावीर के संदेशों के प्रचार-प्रसार करने में और सारे विश्व में उनके अहिंसा-केंद्रों को बनाने में करते तो आज विश्व का कुछ और ही रूप नजर आता और सारा विश्व शांति और अहिंसा के लिए इस धर्म का ऋणी रहता।

अहिंसा के दो हाथ हैं - अपरिग्रह और अनेकांत। अपरिग्रह हमें निर्वस्य नहीं करता। सबके लिए रोटी-कपड़ा -मकान की व्यवस्था ही अपरिग्रह है। मनुष्य जो आज डिब्बाबंद जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो चुका है, अनेकांत उसे पंथ, परंपरा और कदाग्रहों की रूढ़ परतों से बाहर निकलने को प्रेरित करता है। 'अपना सो सच्चा' का राग बहुत अलाप लिया। व्यक्ति, विचार और सत्य की संभावनाएँ और भी हैं। सोच और दृष्टि को उदार और विराट बनाकर ही हम अपने आँगन में आकाश को उतार सकेंगे, संसार को बाँहों में ला सकेंगे।
भगवान ने अहिंसा के साथ अपरिग्रह और अनेकांत का आयाम भी जोड़ा। पर हमने इन दोनों को तो दरकिनार कर दिया। एक अकेली बच गई अहिंसा। लेकिन अकेली उस माँ भगवती अहिंसा को भी अपना लिया जाए तो वह प्राणीमात्र के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है।

अहिंसा को व्यावहारिक तरीके से जीने के लिए महावीर ने एक बहुत ही छोटा-सा शब्द दिया। वह शब्द है- जयणा या यतना। यतना अर्थात विवेक! महावीर के समस्त शास्त्रों और सिद्धांतों को यदि दो शब्दों में व्यक्त करना हो तो मैं कहूँगा कि संसार की नदियों के दो किनारे हैं- अहिंसा और विवेक! अहिंसा को उसके व्यावहारिक तरीके से जीने का गुर है विवेक! विवेक मार्ग है तो अहिंसा उसकी मंजिल। विवेक गति है तो अहिंसा उसका गंतव्य! विवेक यदि साधना है तो अहिंसा साध्य!

अहिंसा को साधने के लिए विवेक की साधना तो करनी ही पड़ेगी! विवेक, किसी व्यक्ति की हथेली पर रखा हुआ वह दीपक है, जो अहिंसा के मार्ग को आलोकित और प्रदर्शित करता है! विवेक व्यक्ति का नेत्र है! विवेक के नेत्रों द्वारा ही व्यक्ति जीवन की मंजिल तक पहुँचता है। व्यक्ति की तीसरी आँख या शिवनेत्र भी विवेक ही है।

भगवान महावीर कहते हैं- अहिंसा धर्म की माँ है। विवेक धर्म का जनक है। जिसके जीवन में विवेक और अहिंसा है, वह सुरक्षित है। धर्म का सार सूत्र है- विवेक से चलो। विवेक से बैठो। विवेक से बोलो। विवेक से सोओ। विवेक से खाओ। सब कुछ विवेकपूर्वक संपादित करो। जहाँ जीवन में हर गतिविधि पर विवेक का अंकुश, विवेक का प्रकाश रहता है, वहाँ कहीं भी पापानुबंध नहीं होते। विवेक ही तो व्यक्ति की हंसदृष्टि है, जो उसे अच्छे व बुरे का बोध कराती है।

यदि आप किसी कार्य को विवेकपूर्ण ढंग से करते हैं और फिर भी कोई जीवहिंसा होती है तो आप महावीर की दृष्टि से पाप के भार से मुक्त हैं। महावीर यही संदेश देते हैं कि मूल्य व्यक्ति के मरने या जीने का नहीं अपितु मूल्य है उसके प्रति रहने वाले भावों का। यदि कोई हमारी बहन-बेटियों की इज्जत पर हाथ डाले तो हम अहिंसा का नारा लगाकर चुपचाप खड़े रहेंगे? या फिर हमारे मंदिर-मस्जिद और इबादतगाहों पर हमले किए जाएँ तो भी क्या हमारी चेतना दुबकी रहेगी? ध्यान रखें अहिंसा कायरता का मार्ग नहीं बताती वरन अहिंसा को तो वही जी सकता है जिसके पास वीरत्व और पुरुषत्व है। देश की सुरक्षा के लिए युद्ध करना हिंसा नहीं, अहिंसा है।

प्रस्तुति : हस्तीमल झेलावत