शब ए बराअत ...गुनाहों की माफी और जन्नत
प्रस्तुति : प्रीति सोनी
शब ए बराअत ... यानि इस्लामिक कैलेंडर के आठवें माह 'शाबान' की 14 तारीख ...। शब ए बराअत वह रात है जब मुस्लिम समाज अपने उन नाते रिश्तेदारों की रूह के लिए खुदा से सुकून मांगता है, जो दुनिया से रूखसत हो चुके हैं। अरबी के दो शब्दों - शब अर्थात रात और बराअत अर्थात निजात से मिलकर बना शब ए बराअत, लैलतुल बराअत के नाम से भी जाना जाता है, जिसका मतलब है, मगफिरत यानि गुनाहों से माफी और निजात की रात ..।
इस्लाम प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद ने इसे रहमत की रात कहा है। माना जाता है कि शब ए बराअत . को खुदा हर इंसान के लिए आयु, असबाब, यश, कीर्ति से लेकर सब कुछ तय करता है और इस रात खुदा से जो भी जितना भी मांगता है, उतना ही वह पाता है। इसीलिए मुस्लिम समाज द्वारा अपनों के गुनाहों की माफी और उन्हें जन्नत नसीब हो इसलिए गुजारिश की जाती है। शिया हो सुन्नी, हर मुसलमान इस रात कब्रिस्तान जाकर अपने पूर्वजों की कब्रगाह पर जाकर रौशन कर, फूल मालाएं चढाते हैं और रातभर जागकर नमाज़ एवं कुरआन की आयतें पढ़कर अपने अज़ीज़ों को बख्शते हैं।
इस दिन पूर्वजों के नाम से फ़ातिहा कराकर ग़रीबों को खाना खिलाने का भी चलन है ताकि ज़रूरतमंदों के दिल से निकली हुई दुआ से मरने वालों के गुनाह माफ़ हो सकें। पिछले साल किए गए कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तक़दीर तय करने वाली इस रात को पूरी तरह इबादत में गु्ज़ारने की परंपरा है। नमाज़, तिलावत-ए-क़ुरआन, क़ब्रिस्तान की ज़ियारत और हैसियत के मुताबिक ख़ैरात करना इस रात के अहम काम हैं।
अरब मुल्कों से इतर भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश में रहने वाले मुसलमान शब ए बराअत को लेकर दो वर्गो में बंटे नजर आते हैं। धार्मिक प्रवृत्ति के लोग शब ए बराअत के अवसर पर मस्जिदों में पूरी रात इबादत में गुजारते हैं तथा अगले दिन रोजा रखते हैं। दूसरे वर्ग से ताल्लुक रखने वाले लोग इबादत की कीमती रात को पटाखे छोड़ने में गुजारते हैं।