- अनुपमा जैन
जील, बेलजियम। सुन्न पड़ती जा रही संवेदनाओं के इस दौर में राहत देने वाली एक खबर...भले ही यह खबर आज अजीब सी लगे लेकिन यह हकीकत है कि बेल्जियम के खूबसूरत छोटे से शहर जील में मध्ययुगीन एक चर्च है जो डिम्फना देवी को समर्पित है। आज भी श्रद्धालु इस शहर में चर्च के दर्शन के लिए आते हैं और अनेक मानसिक रोगी यहीं के हो जाते हैं।
सदियों से यह शहर अपने यहां दूर-दूर से आए अजनबी मानसिक रोगियों को बसेरा देता रहा है। इन अजनबी मानसिक रोगियों को यहां 'दत्तक परिवार' मिलते हैं जो उन्हें स्नेह देते हैं, उन्हें अपनाते हैं, अपने घरों में अपने साथ रखते हैं, उनका ख्याल रखते हैं। ऐसे कई रोगी तो इन परिवारों के साथ 50-50 वर्षों से रहते चले आए हैं। कई परिवारों में तो माता-पिता की मृत्यु के बाद उनके बच्चों ने इन अजनबी मानसिक रोगियों की देखभाल जारी रखी..
भले ही यह खबर आज अजीब सी लगे लेकिन यह हकीकत है कि बेल्जियम के खूबसूरत छोटे से शहर जील में मध्ययुगीन एक चर्च है जो डिम्फना देवी को समर्पित है। मान्यता है कि डिम्फना देवी के पास मानसिक बीमारियां दूर करने की 'शफा' थी। इसीलिए यूरोपभर से आज भी श्रद्धालु इस शहर में चर्च के दर्शन के लिए आते हैं और अनेक मानसिक रोगी यहीं के हो जाते हैं।
इसी शहर में दूर-दूर से अनजाने, अजनबी मानसिक रोगी पिछले 700 बरस से आते रहे हैं, यहां के लोग न केवल उन्हें अपने यहां रखकर उनका ख्याल रखते हैं बल्कि उन्हें अपने घरों में रखकर उनकी देखभाल करते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि यहां आए ये सभी मानसिक रोगी नहीं कहलाते बल्कि 'मेहमान' कहलाते हैं। फिलहाल इस शहर में लगभग 250 'मेहमानों' का बसेरा इन 'शुभ चिंतकों' के यहां है।
दरअसल यह जील का चलन है, लेकिन यह सिर्फ एक प्रथा या परंपरा ही नहीं है बल्कि सरकार भी इस कार्यक्रम को सहायता देती है। इन मेहमानों के यहां आने पर सीधे इन शुभचिंतकों के घरों में नहीं भेजा जाता है बल्कि इस कार्यक्रम को चलाने वाले मानसिक रोगों के अस्पताल में पहले भेजा जाता है, वहां उनके इलाज के साथ-साथ इन शुभचिंतकों के घरों में रहने को भेजा जाता है और अस्पताल के अधिकारी ही यह तय करते हैं कि किस मेहमान को किस शुभचिंतक के दत्तक घर में भेजा जाए।
वैसे आमतौर पर मेहमान और दत्तक परिवार अक्सर आपस में घुलमिल जाते हैं, लेकिन कभी ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं जब शुभचिंतक परिवार और मेहमान दोनों में से किसी ने एक-दूसरे के साथ बुरा सलूक किया, वैसे यहां एक कानून यह भी है कि अगर कोई मेहमान परिवार में रहकर कोई अपराध करता है तो गलती परिवार की ही मानी जाती है, लेकिन साथ ही ऐसे उदाहरण भी हैं, जब कोई मेहमान नियंत्रण से बाहर हो जाता है तो उसे जंजीर से कैद कर लिया गया हो या नजर कैद तक कर दिया गया हो।
मान्यता है कि देवी डिम्फना सातवीं सदी की आयरिश राजकुमारी थी, जो अपनी माता की मृत्यु के बाद अपने पिता के क्रोध से बचते हुए जील आ गई और यहां उसने अपना जीवन मानसिक रोगियों के लिए समर्पित कर दिया और उनके हाथ में ऐसी शफा थी कि मानसिक रोगी उसकी सेवा से ठीक भी हो जाते थे। इसी मान्यता के चलते यूरोपभर से श्रद्धालु इस चर्च के दर्शनार्थ आते हैं।
अनेक परिवार हैं जो एक के बाद एक कितने ही मानसिक रोगियों को रखते रहे हैं। ऐसे अनेक परिवार हैं, जो अपने परिवार में लगातार कई रोगी रख चुके हैं। उनका कहना है कि इनके 'दीवनेपन' से अक्सर वे निबट लेते हैं, कुछ तो पूरी तरह से उनके अपने बन जाते हैं और पूरी तरह से घुलमिल जाते हैं।
आखिर जील में सदियों से यह पंरपरा कैसे निर्बाध रूप से चली आ रही है, जबकि जील निवासियों द्वारा इन अजनबी मेहमानों को इन दत्तक घरों में रखना अक्सर चर्चा का विषय रहा है और सदियों से इस प्रथा को लेकर अलग-अलग मत रहे हैं। यहां के लोगों का कहना है कि यह उनकी विरासत है जिसे आगे बढ़ाना उनका फर्ज है और उन्हें इस परंपरा पर गर्व है।
बेल्जियम सरकार प्रत्येक शुभचिंतक परिवार को प्रत्येक मेहमान के लिए लगभग 45 डॉलर प्रतिदिन के हिसाब से मेहमानों के भरन-पोषण के लिए देती है, लेकिन यह भी सच है कि धीरे-धीरे इन शुभचिंतक परिवारों की संख्या सिमट रही है, लेकिन फिर भी ऐसे जील निवासी अब भी काफी हैं जो इस परंपरा को आगे ले जाना अपना फर्ज मानते हैं।