Divorce Temple in Japan: मंदिर हमारी धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं। विश्व में कई अनूठे और अनोखे मंदिर हैं। हर मंदिर की अपना महत्व और खासियत होती है। कुछ मंदिर अपनी भव्यता के लिए जाने जाते हैं, तो कुछ अपनी अनूठी मान्यताओं के कारण प्रसिध्द होते हैं।
आमतौर पर, मंदिरों में लोग अपनी मनोकामनाओं को लेकर भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए जाते हैं, लेकिन आज हम आपको ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जिसे तलाक मंदिर (Divorce Temple in Japan) के नाम से जाना जाता है। जी हां, जापान में एक ऐसा मंदिर है जो महिलाओं के बीच खासा महत्त्व रखता है। ऐसी क्या विशेषता है इस मंदिर की आइये जानते हैं।
700 साल पहले किसने किया 'डाइवोर्स टेंपल' का निर्माण
जापान के कामाकुरा शहर में मजूद 'डाइवोर्स टेंपल का इतिहास लगभग 700 साल पुराना है। 'तलाक मंदिर' के नाम से प्रसिद्द इस मंदिर का निर्माण बौद्ध नन काकुसन ने अपने पति होजो टोकीमून के साथ मिलकर करवाया था।
ये वो समय था जब महिलाओं के पास अधिकार न के बराबर थे। यदि कोई महिला अपने पति से परेशां होती थी या अपनी शादी से खुश नहीं थी तब भी वह तलाक लेने के लिए स्वतंत्र नहीं थी। लेकिन पुरुष अपनी मर्जी से कभी भी पत्नी को तलाक दे सकते थे। काकुसन खुद भी एक ऐसे ही दुखद विवाह में फंसी हुई थीं। इसलिए उन्होंने एक ऐसा स्थान बनाने का फैसला किया जहां महिलाएं अपने पतियों से अलग होकर शांति से रह सकें।
महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है यह मंदिर
जापान का यह मंदिर महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है। इसका प्रमुख कारण है कि यह मंदिर घरेलू हिंसा या अत्याचार का शिकार हुई महिलाओं के लिए एक आश्रय स्थल कहा जाता है। मान्यता है कि पुराने समय में, जब जापान के समाज में महिलाओं के अधिकार बहुत कम थे, तब इस मंदिर की स्थापना की गई थी।
ऐसी महिलाएँ जो घरेलू हिंसा या अत्याचार का शिकार होती थीं उन्हें यहां आश्रय मिलाता था। यहां उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से ठीक होने के लिए सही माहौल और सोशल सपोर्ट मिलता था। आज भी जापान का यह मंदिर महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है।
घरेलू हिंसा से बचने के लिए महिलाएं लेती थीं मंदिर में पनाह
वो समय जब जापान में महिलाओं के पास अपनी सुरक्षा के मौलिक अधिकार नहीं थे तब पुरुषों का अपनी पत्नियों को तलाक देन बहुत आम बात थी। तब इस मंदिर में घरेलू हिंसा और पति या ससुराल से पीड़ित महिलाएं आश्रय की तलाश में आती थी।
अनूठे 'डाइवोर्स टेंपल के दरवाजे हर उस महिला के लिए खुले थे जो अपने पति के अत्याचारों से मुक्ति चाह रही थी। मंदिर में उन्हें न केवल शारीरिक सुरक्षा मिलती थी बल्कि एक ऐसा माहौल भी मिलता था जहां वे आध्यात्मिक शांति और सांत्वना पा सकती थीं। यह मंदिर आज भी उन सभी महिलाओं के लिए सुरक्षा का प्रतीक है जो किसी भी तरह के अत्याचार का सामना कर रही हैं।
तलाकशुदा महिलाओं के लिए सहारा बना 'डाइवोर्स टेंपल
इस मंदिर में महिलाएं अपने पतियों को तलाक देने के लिए तीन साल तक रह कर आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करती थीं। बाद में इस अवधि को घटाकर दो साल कर दिया गया। यहां महिलाएं न केवल शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होती थीं, बल्कि आत्मनिर्भर बनने का प्रयास भी करती थी ताकि वे आर्थिक रूप से सक्षम हो सकें। कई सालों तक इस मंदिर में केवल महिलाओं को ही प्रवेश दिया जाता था। लेकिन 1902 में एक पुरुष मठाधीश की नियुक्ती के बाद यहां पुरुषों को भी प्रवेश मिलने लगा।
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