अमेरिकी छात्रों ने जिम्मी मगिलिगन सेंटर पर सीखा सस्टेनेबल कम्यूनिटी डवलपमेंट
अमेरिका से आए कुछ छात्र, उनके लोकल दोस्त (इंदौर के रहवासी) और क्वींस कॉलेज के टीचर जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर पहुंचे। यहां आकर उन्होंने ऐसी विधियां सीखीं जिससे समाज में मिलजुलकर ऐसा विकास किया जाए जो बहुत लंबे समय तक टिका रहे।
यहां आए दल ने जब सेंटर के संचालक जिम्मी मगिलिगन का रहनसहन देखा तो वे सुखद आश्चर्य से भर गए। श्री मगिलिगन 4 लोगों के परिवार के अलावा गायों के साथ मिलजुलकर रहते हैं। वे अपनी जरूरत का हर सामान पैदा करते हैं। उन्हें भोजन, कॉस्मेटिक के लिए शॉपिंग नहीं करना पड़ती। वह पानी बिजली की जरूरतों को स्वयं ही पूरा करते हैं। इसके लिए वह सोलर और वायु ऊर्जा का उपयोग करते हैं। उनके इन संसाधनों का लाभ समाज को भी मुफ्त में मिलता है।
अमेरिका से आए छात्रों के मुताबिक़ ऐसा पहली बार हुआ जब उन्होंने साबुन (अरीठा) को पेड़ पर उगते देखा। यहां उन्होंने घर पर ही उपचार के लिए कई तरह के औषधिय वृक्ष देखे। यहां पर हर किसी को आने की अनुमति है। यहां करीब 70,000 लोग को अपनी जिंदगी इसी तरह चलाने के लिए ट्रेनिंग दी जा चुकी है, ताकि वे फिर से उपयोग में लाई जा सकने वाली ऊर्जा को पैदा करना सीख सकें।
अमेरिकी छात्रों ने जीवन में पहले कभी बारिश के पानी का फिर से उपयोग करने की प्रक्रिया नहीं देखी थी। उन्होंने नारियल के फेंके जाने वाले कड़क हिस्से में पौधे लगे देखे। उनके मुताबिक़ ये चीजें तो अमेरिका को भी भारत से सीखनी चाहिए। समीर शर्मा ने यंग जनरेशन की इस काम में रुचि लेने की महत्ता पर जोर दिया। अमेरिकी छात्रों ने कहा कि अगर वे यहां नहीं आते तो उनसे बहुत कुछ छूट जाता।