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Written By ND

मां कैसी है?

- आचार्य किरीट भाई

लक्ष्मी
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मां, कैसी है? श्रीसूक्त में इसे सुवर्णा कहा है। वह दयालु है। इस मां के आगे अश्व, मध्य में रथ और पीछे हाथी है। श्री देवी के आगे अश्व, मध्य में रथ और पीछे चिंघाड़ने वाले गज, मात्र इतना अर्थ नहीं है। पराया दर्द अपनाए उसे इंसान कहते हैं। पथिक जो बांट कर खाए उसे इंसान कहते हैं।

यह वैदिक भाषा है, इसमें वेद का तत्व है जो कठिन और गूढ़ होता है। लक्ष्मी मैया के आगे अश्व का अर्थ चंचलता है। लक्ष्मी एक स्थान पर स्थिर न हो। नदी, साधु और पैसा यदि स्थान पर रुक गए तो बदबू आएगी। इनका चलते रहना ही कल्याणकारी है।

बीच में चार पहिए वाला रथ, चारों पुरुषार्थ का घोतक है, अंत में हाथी। हाथी आगे चलता है, पीछे नहीं मुड़ता। इसकी छोटी-छोटी आंखें सूख्मदर्शी होती हैं। हाथी भविष्यज्ञाता भी होता है। हाथी के पीछे होने का अर्थ उस पर सूक्ष्मदृष्टि रखना दुरुपयोग हो तो हाथी की चिंघाड़ प्रबोध बने।

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लक्ष्मी अनपगामिनी है- वह धान्य लक्ष्मी है, वह कभी नष्ट न होने वाली ऐश्वर्य लक्ष्मी है।

नीति कहती है कि धन का उपयोग तीन तरह से करो- बालक की तरह उसे भोगो, युवक की तरह दान दो और वृद्ध की तरह उसे संभाल कर रखो। मुझे ऐसी लक्ष्मी चाहिए जिसमें मुझे स्वर्ण, गाय, अश्व और पुरुष प्राप्त हों-

हम मानते हैं इसलिए कहते हैं कि शरीर का मूल स्वरूप आरोग्य है।

हे मां! आपकी कृपा से हमारा शरीर अंत तक स्वस्थ निरोग रहे। यदि शरीर अस्वस्थ हो तो यह हमारे पाप का परिणाम है। अतः धनवान ही लक्ष्मीवान बनकर ही मनुष्य का कल्याण हो सकता है।