शुभ विचार से आएगा परिवर्तन
- मुनिश्री प्रतीक सागर
वर्तमान युग परिवर्तन का युग है। जहाँ देखो वहाँ परिवर्तन का दौर चल रहा है। तुमने भी अपने जीवन का तरीका बदल लिया, लेकिन सोच में बदलाव नहीं आ पा रहा। जब तुम्हारे विचार शुभ होंगे, तभी तुम्हारे जीवन में परिवर्तन नजर आएगा। उन्होंने कहा कि कुछ बनने के लिए कुछ मिटना पड़ता है। जब एक पानी की बूँद अपने अस्तित्व को मिटाकर सागर में जा गिरती है तो वह बूँद नहीं बल्कि सागर बन जाती है। मैं तो मात्र तीन दिन के लिए यहाँ आया हूँ, वैसे भी तीन का आँकड़ा अति महत्वपूर्ण है। जीवन के भी तीन पड़ाव हैं- बचपन, जवानी और बुढ़ापा। जब सूर्य उदित होता है तो उसका प्रकाश चहुँओर फैलता है। अब अगर तुम अपने घर के खिड़की-दरवाजे ही बंद कर दो तो तुम्हारे जीवन में प्रकाश कहाँ से आएगा। मुनिश्री ने कहा कि जीवन भर सभी पर विश्वास कर लेते हो, पर तुम्हारे भीतर जो परमात्मा विराजित है, यह विश्वास नहीं कर पाते।
सांसारिक मनुष्य को संत का नगर में आना बहार लगता है, बैठना त्योहार लगता है और बोलना उपहार लगता है। जब तुम इस सच्चाई को जान जाओगे तभी तुम्हारे जीवन में सार्थक परिर्वतन आएगा। उन्होंने कहा आदमी को बैठने के लिए कितनी जगह चाहिए। ढाई फुट जगह में एक इंसान आराम से बैठ सकता है, लेकिन मन की तृष्णा कितनी जमीन खरीदती है। कितनी बड़ी-बड़ी कोठियाँ बनाती है। पुराने दौर में एक बिल्डिंग में 10 परिवार रह लेते थे, अब एक कोठी में हम दो-हमारे दो रहते हैं। बच्चे स्कूल चले जाते हैं, आदमी फैक्टरी चला जाता है। घर में कुत्ता और पत्नी रह जाती है। कहीं आदमी को रहने जगह नहीं है, कहीं रहने को आदमी नहीं है। संसार की दशा बड़ी विचित्र है। धरती पर स्थान तो बहुत है, मगर उदारता में कमी आ गई है। लोभ की प्रवृत्ति बढ़ रही है। स्वयं के भोग में चाहे जितना खर्च हो जाए, उसका कष्ट नहीं होता। किसी की सहायता करने में थोड़ा भी बहुत लगता है। ऐसी प्रवृत्ति के चलते ही हम ना अपना उद्धार कर पाते है और न ही औरों का। हमें भी समय के साथ अपने विचारों में, अपने आप में परिवर्तन लाना होगा तभी हमारा जीवन सार्थक सिद्ध हो सकेगा। और हम भगवान के घर जाने की एक सीढ़ी को और आसानी से पार कर पाएँगे।