• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. संत-महापुरुष
  4. Swami Ramakrishna Paramhansa
Written By

16 अगस्त को योगी रामकृष्ण परमहंस की पुण्यतिथि

16 अगस्त को योगी रामकृष्ण परमहंस की पुण्यतिथि - Swami Ramakrishna Paramhansa
Ram Krishna Paramhans: 16 अगस्त को भारत के एक महान संत, विचारक एवं आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस की पुण्यतिथि मनाई जा रही है। उच्चकोटि के साधक व विचारक रहे रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन शुक्ल द्वितीया को हुआ था तथा तारीख के अनुसार उनका जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के एक प्रांत कामारपुकुर गांव में हुआ था। पिता का नाम खुदीराम तथा माता का नाम चंद्रमणि देवी था। रामकृष्ण जी का बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। 
 
माना जाता है कि उनके माता-पिता को उनके जन्म से पहले ही अलौकिक घटनाओं का अनुभव हुआ था। उनके पिता को एक रात दृष्टांत हुआ, जिसमें उन्होंने देखा कि भगवान गदाधर ने स्वप्न में उनसे कहा था कि वे विष्णु अवतार के रूप में उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे तथा माता चंद्रमणि को भी ऐसे ही एक दृष्टांत का अनुभव हुआ था, जिसमें उन्होंने शिव मंदिर में अपने गर्भ में एक रोशनी को प्रवेश करते हुए देखा था। 
 
रामकृष्ण परमहंस जी ने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें भारत के एक महान संत के रूप में जाना जाता है। वे मानवता के पुजारी थे। हिन्दू, इस्लाम और ईसाई आदि सभी धर्मों पर उसकी श्रद्धा एक समान थी, ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने बारी-बारी सबकी साधना करके एक ही परम-सत्य का साक्षात्कार किया था। 
 
अपने बचपन से ही उन्हें विश्वास था कि भगवान के दर्शन हो सकते हैं, अतः भगवान प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति की तथा सादगीपूर्ण जीवन बिताया। अपने जीवन में उन्होंने स्कूल के कभी दर्शन नहीं किए थे। उन्हें न तो अंग्रेजी आती थी, न वे संस्कृत के जानकार थे। वे तो सिर्फ मां काली के भक्त थे। उनकी सारी पूंजी महाकाली का नाम-स्मरण मात्र था।
 
रामकृष्ण परमहंस सिर से पांव तक आत्मा की ज्योति से परिपूर्ण थे। उन्हें आनंद, पवित्रता तथा पुण्य की प्रभा घेरे रहती थीं। वे दिन-रात चिंतन में लगे रहते थे। सांसारिक सुख, धन-समृद्धि का भी उनके सामने कोई मूल्य नहीं था।

जब उनके वचनामृत की धारा फूट पड़ती थी, तब बड़े-बड़े तार्किक भी अपने आप में खोकर मूक हो जाते थे। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनि, महावीर और बुद्ध और जो परंपरा से भारतीय संतों के उपदेश की पद्धति रही है, वही योगी रामकृष्ण की वचनामृत की शैली भी वैसी ही थी। रामकृष्ण परमहंस अपने उपदेशों में तर्कों का सहारा कम लेते थे, जो कुछ समझाना होता वे उसे उपमा और दृष्टांतों से समझाते थे। 
 
सनातन परंपरा की साक्षात प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले महात्मा संतों में से एक थे रामकृष्ण परमहंस। विवेकानंद ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस द्वारा दी गई शिक्षा से पूरे विश्व में भारत के विश्व गुरु होने का प्रमाण दिया। तथा हमेशा सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। 
 
एक प्रसंग के अनुसार एक बार रामकृष्ण जी को दक्षिणेश्वर में पुजारी की नौकरी मिली। उनका 20 रुपए वेतन तय किया गया, जो उस जमाने के समय के लिए पर्याप्त था। लेकिन 15 दिन ही बीते थे कि मंदिर कमेटी के सामने उनकी पेशी हो गई और कैफियत देने के लिए कहा गया। दरअसल एक के बाद एक अनेक शिकायतें उनके विरुद्ध कमेटी तक जा पहुंची थीं।
 
किसी ने कहा कि- यह कैसा पुजारी है, जो खुद चखकर भगवान को भोग लगाता है, तो किसी ने कहा- फूल सूंघ कर भगवान के चरणों में अर्पित करता है। उनके पूजा के इस ढंग पर कमेटी के सदस्यों को बहुत आश्चर्य हुआ था।  
जब रामकृष्ण जी कमेटी के सदस्य के सामने पहुंचे तो एक सदस्य ने पूछा- यह कहां तक सच है कि तुम फूल सूंघ कर देवता पर चढ़ाते हो?
 
इस पर रामकृष्ण परमहंस ने सहज भाव से कहा- मैं बिना सूंघे फूल भगवान पर क्यों चढ़ाऊं? मैं पहले देख लेता हूं कि उस फूल से कुछ सुगंध भी आ रही है या नहीं?
 
तत्पश्चात दूसरी शिकायत रखी गई- हमने सुना है कि तुम भगवान को भोग लगाने से पहले खुद अपना भोग लगा लेते हो? 
 
रामकृष्ण जी ने पुन: सहज भाव से जवाब देते हुए कहा- जी, मैं अपना भोग तो नहीं लगाता पर मुझे अपनी मां की बात याद है कि वे भी ऐसा ही करती थीं। जब कोई चीज बनाती थीं तो चखकर देख लेती थीं और फिर मुझे खाने को देती थीं। उन्होंने फिर कहा- मैं भी चख कर देखता हूं। पता नहीं जो चीज किसी भक्त ने भोग के लिए लाकर रखी है या मैंने बनाई है वह भगवान को देने योग्य है या नहीं। 
 
उनका सीधे-सादे शब्दों में यह जवाब सुनकर कमेटी के सदस्य निरुत्तर हो गए।
 
ऐसे महान योगी रामकृष्ण परमहंस को गले में सूजन को जब डॉक्टरों ने कैंसर बताकर समाधि लेने और वार्तालाप से मना किया तब भी वे मुस्कराएं और सन् 1885 के मध्य में गले की बीमारी के चिह्न नजर आए और शीघ्र ही बीमारी ने गंभीर रूप धारण कर लिया जिससे वे मुक्त न हो सके और 50 वर्ष की उम्र में 16 अगस्त सन् 1886 को श्रावणी पूर्णिमा के अगले दिन प्रतिपदा को प्रातःकाल में उन्होंने महाप्रस्थान किया। 
 
ऐसे भारत के आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस ने अपना संपूर्ण जीवन धर्म के प्रचार-प्रसार में व्यतीत किया। उनकी पुण्यतिथि हर साल 16 अगस्त को मनाई जाती है।
ये भी पढ़ें
16 अगस्त : रानी अवंतीबाई लोधी की जयंती, जानें कौन थीं ये रानी