why india returned haji pir pass to Pakistan: 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक है। यह युद्ध, जो मुख्य रूप से कश्मीर मुद्दे पर लड़ा गया था, कई मायनों में भारतीय सेना के पराक्रम और दृढ़ संकल्प का प्रतीक बना। इस युद्ध में भारत ने पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर में स्थित हाजीपीर पास पर भी जीत हासिल कर ली। लेकिन युद्ध के बाद हुए ताशकंद समझौते में भारत को पाकिस्तान को हाजी पीर पास लौटना पड़ा। इसी के ठीक 12 घंटे बाद ताशकंद में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की संदिग्ध मृत्यु आज भी एक सवाल है। आइये इस आलेख में जानते हैं 1965 के युद्ध से जुड़ी सारी महत्वपूर्ण घटनाएं।
1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध: ऑपरेशन जिब्राल्टर से ताशकंद तक
1965 के अप्रैल महीने में शुरू हुआ यह युद्ध, पहले कच्छ के रण में छोटी-मोटी झड़पों के साथ शुरू हुआ। लेकिन अगस्त में पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर लॉन्च कर दिया, जिसका उद्देश्य कश्मीर घाटी में घुसपैठियों को भेजकर विद्रोह भड़काना था। इस योजना के विफल होने पर, पाकिस्तान ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के तहत छंब सेक्टर में बड़ा हमला किया, जिसका लक्ष्य अखनूर और जम्मू को काटना था।
भारतीय सेना ने पाकिस्तान के इस हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया। भारतीय सेना ने न केवल पाकिस्तानी हमलों को विफल किया, बल्कि पश्चिमी सीमा पर भी जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी। सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक बढ़त हाजीपीर पास पर कब्जा करना था।
हाजीपीर पास: एक रणनीतिक महत्व की कुंजी
हाजीपीर पास (Hajipir Pass), जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण पहाड़ी दर्रा है। यह दर्रा पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला में लगभग 8,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसका रणनीतिक महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह भारत और पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर के बीच घुसपैठ के प्रमुख मार्गों में से एक है। 1965 के युद्ध के दौरान, भारतीय सेना ने ऑपरेशन बक्शी के तहत हाजीपीर पास पर कब्ज़ा कर लिया था। यह एक बड़ी सैन्य सफलता थी, जिसने पाकिस्तान को भारी सामरिक नुकसान पहुँचाया। इसके अलावा, ठिथवाल (Titwal) भी कश्मीर में एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र था जहाँ युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ा था। इन क्षेत्रों पर भारतीय नियंत्रण ने युद्ध में भारत की स्थिति को काफी मजबूत कर दिया था।
ताशकंद समझौता: जीत के बाद भी क्यों गँवाया हाजीपीर?
1965 का युद्ध 23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र के संघर्ष विराम के साथ समाप्त हुआ। इसके बाद, सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमंत्री अलेक्सेई कोसिगिन की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद (उज्बेकिस्तान) में शांति समझौता हुआ। 10 जनवरी 1966 को हस्ताक्षर किए गए इस समझौते के तहत, दोनों देशों ने युद्ध से पहले की स्थिति (स्टेटस क्यूओ एंट) को बहाल करने पर सहमति व्यक्त की।
इसी समझौते के कारण, भारत को हाजीपीर पास और ठिथवाल जैसे युद्ध में जीते गए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों को पाकिस्तान को वापस करना पड़ा था। यह भारतीय जनता और सेना के लिए एक निराशाजनक निर्णय था, क्योंकि उन्होंने इन क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने के लिए भारी बलिदान दिए थे। इस फैसले के पीछे की मुख्य वजह यह थी कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव, विशेष रूप से सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका का, था जो दोनों देशों के बीच पूर्ण शांति बहाली चाहते थे और चाहते थे कि सीमा पर स्थिति यथावत हो जाए।
लाल बहादुर शास्त्री जी की संदिग्ध मृत्यु का रहस्य
ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के ठीक 12 घंटे बाद, 11 जनवरी 1966 की सुबह, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की ताशकंद में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, उनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी, लेकिन कई लोगों का मानना है कि उनकी मृत्यु संदिग्ध थी और इसके पीछे कोई साजिश हो सकती है। उनकी मृत्यु को लेकर आज तक कई सवाल उठते हैं, और यह भारतीय इतिहास के सबसे बड़े अनसुलझे रहस्यों में से एक है।
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