hindu minority of afghanistan: अफगानिस्तान का नाम सुनते ही सबसे पहले जेहन में तालिबान और विनाश की तस्वीरें उभरती हैं। बामियान के बुद्ध की विशाल मूर्तियों को डायनामाइट से उड़ाने की घटना विश्व पटल पर उसकी कट्टरपंथी विचारधारा का काला अध्याय बन गई। आज भले ही अफगानिस्तान एक इस्लामी गणराज्य के रूप में जाना जाता है, लेकिन इतिहास के पन्ने खंगालें तो पता चलता है कि यह कभी हिंदू धर्म का एक प्रमुख केंद्र था। यहाँ कई सभ्यताएं और धर्म फले-फूले हैं। तो आइए, इतिहास के पन्नों को पलटते हैं और जानते हैं कि अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा हिंदू कब रहते थे और कैसे गंधारी का यह देश धीरे-धीरे खाली हो गया।
वैदिक काल से मध्यकाल: हिंदुओं का स्वर्ण युग
अफगानिस्तान में हिंदुओं की सबसे बड़ी आबादी वैदिक काल से लेकर मध्यकाल तक थी, विशेष रूप से छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक। इस दौरान अफगानिस्तान के कई क्षेत्र, जैसे गांधार (आज का कंधार) और कंबोज, हिंदू संस्कृति के जीवंत केंद्र थे। कल्पना कीजिए, उस समय के काबुल और गांधार जैसे शहर हिंदू और बौद्ध मंदिरों की भव्यता से सुसज्जित थे। महाभारत में गांधारी का उल्लेख मिलता है, जो गांधार की राजकुमारी थीं। यह उस वक्त इस क्षेत्र में हिंदू प्रभाव का एक स्पष्ट प्रमाण है। इस समय हिंदू आबादी अपने चरम पर थी, क्योंकि यह क्षेत्र धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था।
कल्लार से आनंदपाल तक हिंदू शासकों का दबदबा:
इतिहासकारों के अनुसार, कल्लार, सामंतदेव, जयपाल, और आनंदपाल जैसे पराक्रमी हिंदू राजाओं ने इस क्षेत्र पर शासन किया। उनका शासनकाल अफगानिस्तान में हिंदू धर्म की मजबूती और व्यापकता को दर्शाता है। यह वे शासक थे जिन्होंने इन क्षेत्रों में हिंदू संस्कृति को पोषित किया और उसे समृद्ध बनाया। मंदिरों का निर्माण हुआ, ज्ञान के केंद्र स्थापित हुए और व्यापार फला-फूला, जिससे हिंदू आबादी को फलने-फूलने का अवसर मिला।
इस्लाम का आगमन और हिंदू आबादी में गिरावट
हालांकि, सातवीं शताब्दी में इस्लाम के आगमन ने इस क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव लाया। अरब सेनाओं के आक्रमण और बाद के युद्धों ने धीरे-धीरे हिंदू समुदाय को कम करना शुरू कर दिया। इस्लामीकरण की प्रक्रिया सदियों तक चली, जिसके परिणामस्वरूप कई हिंदू या तो धर्मांतरित हो गए, या उन्हें अपनी जान बचाने के लिए पलायन करना पड़ा। लगातार युद्धों और अस्थिरता ने भी हिंदू आबादी को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया।
आंकड़ों की दुखद कहानी
आज, अफगानिस्तान में हिंदू समुदाय बहुत छोटा रह गया है। एक समय जहां लाखों हिंदू निवास करते थे, वहीं वर्तमान में उनकी संख्या नगण्य है। 1970 के दशक तक भी अफगानिस्तान में लगभग 50,000 हिंदू और सिख समुदाय के लोग रहते थे। सोवियत आक्रमण (1979) और उसके बाद के गृहयुद्धों ने इस समुदाय को और भी कमजोर कर दिया। 1990 के दशक में तालिबान के उदय के बाद, धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और बढ़ गया, जिसके कारण शेष हिंदू आबादी का एक बड़ा हिस्सा भारत या अन्य देशों में पलायन कर गया।
आज, अफगानिस्तान में कुछ सौ हिंदू और सिख ही बचे हैं, जो बेहद कठिन परिस्थितियों में अपने धर्म का पालन कर रहे हैं। यह आंकड़े चौंकाने वाले हैं और यह दर्शाते हैं कि कैसे एक समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र, सदियों के संघर्ष और कट्टरपंथ के कारण अपनी मूल पहचान से दूर हो गया। गंधारी का देश, जो कभी विविध संस्कृतियों का संगम था, अब अपने इतिहास के एक महत्वपूर्ण हिस्से को खो चुका है।
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