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Written By अंजू निगम

यात्रा संस्मरण : सफर..

यात्रा संस्मरण :  सफर.. - journey
हम लोग लखनऊ से देहरादून वापस जा रहे थे। परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि मेरे और पतिदेव के कोच अलग-अलग हो गए। पति का कोच आगे और मेरा डिब्बा दो कोच छोड़ कर था। मेरे साथ मेरा दो महीने का बेटा भी था।



पति के साथ बड़ा बेटा था, तकरीबन ३ साल का। आधी रात के करीब मेरे पेट में अचानक तेज दर्द उठा किसी तरह चैन नहीं आ रहा था। ऐसी कोई दवा थी नहीं मेरे पास जिससे दर्द में आराम मिलता। गाड़ी मुरादाबाद स्टेशन पर रुकी थी। जब कुछ समझ न आया तो T.T से आग्रह किया कि दो कोच आगे से मेरे पति को बुला दें। ठंड की वजह से सारे खिड़की-दरवाजे बंद थे, जिससे कितना बहूमुल्य समय नष्ट हो गया।
 
इत्तेफाक से पति को कुछ अहसास सा हुआ कि कोई इनका नाम लेकर बुला रहा है, क्योंकि इनकी बर्थ दरवाजे से एकदम सटी हुई थी।
 
दरवाजा खोल बाहर झांका तो टी.टी ने बताया कि आपकी पत्नी की तबीयत काफी खराब है और वह आपको बुला रही हैं। बेटा सो रहा था, पर पापा के उतरते वो उठ बैठा और पापा से पुछा कि वे कहां जा रहे हैं। पापा ने तसल्ली दी कि वे बस अभी मम्मी को देख वापस आ रहे हैं। मेरे कोच तक पहुंचते सिग्नल लाल हो गया।
 
मुझे देख वापस हो लेने का सोच जैसे ही ये मेरे कोच में चढ़े गाड़ी चल दी। उतरने का सोचते कि गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली। मन मार इन्हें भी मेरी बोगी में रुकना पड़ा। इधर मैं दर्द से तड़प रही थी और उधर बेटा अकेला। जाने मन में कितने बुरे ख्याल सर उठाने लगे। मन ही मन हमने यही प्रार्थना की कि बेटा अपनी सीट पर ही बना रहे। जाने कितनी मन्नतें उस एक घंटे में हमने कर डाली। ऐसे समय उन टी.टी ने हमारा हर तरह से सहयोग दिया।
 
एक घंटे बाद बरेली स्टेशन आते ही मय सामान हम दूसरी बोगी की तरफ भागे। सामान ज्यादा, दर्द से बेहाल मैं और मेरी गोद में छोटा बेटा। बोगी तक पहुंचते हम मानसिक और शारीरिक तौर पर कितने बेहाल हो गए थे यह हमसे ज्यादा कौन समझ सकता है।
 
बोगी में पहुंचकर देखा कि बेटा रोते-रोते थक कर सो गया था। उसके गालो में बह कर सुख चुके आसुंओं की लकीर बनी थी। जब उसको जगाया तो बेटा हमें सामने पा हलक-हलक कर रोया। आंसुओ से हमारी आंखे भी नम थी पर वे खुशी के आंसु थे जो बेटे को सही-सलामत पा लेने पर बह निकले थे। मुझे फुड-पॉइजनिगं हो गई थी। तेज बुखार और उल्टियों से हाल बेहाल था।
 
वो सफर बेटे और हमारे मन में कई बरसों तक चस्पा रहा और याद रही उन टी.टी की सज्जनता, जिन्होनें ऐसे नाजुक समय में हमारी मदद की।                        
         
 
       
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