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Last Updated : शनिवार, 7 अगस्त 2021 (23:46 IST)

आर्थिक तंगी के बावजूद परिवार ने लाकर दिया था 7.5 हजार रुपए का जैवलिन, ऐसी रही है नीरज चोपड़ा के संघर्ष की कहानी

आर्थिक तंगी के बावजूद परिवार ने लाकर दिया था 7.5 हजार रुपए का जैवलिन, ऐसी रही है नीरज चोपड़ा के संघर्ष की कहानी - Neeraj Chopra had to struggle a lot know more about him
पानीपत: टोक्यो ओलंपिक 2020 खेलों में शुरू से ही पदक के सशक्त दावेदार माने जाने वाले हरियाणा में पानीपत के गांव खंडरा निवासी जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने आज भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता वह भी एथलेटिक्स ने। पहले प्रयास में ही 87 मीटर दूर भाला फेंक चुके नीरज ने दूसरे प्रयास में भी 87.58 तक भाला फेंका जो आज का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा।

इससे पहले बुधवार को ख्याति अनुरूप खेल का प्रदर्शन करके अपने आपको साबित करते हुए पहले ही प्रयास में सबसे अधिक 85.65 मीटर जैवलिन फेंक कर सीधे फाइनल में प्रवेश कर लिया।
उनके शानदार प्रदर्शन को देखते हुए खेल प्रेमियों को उम्मीद ही नहीं वरन पूरा भरोसा था कि वह देश को ओलंपिक की एथलेटिक्स स्पर्धा का अवश्य पहला पदक दिलाएंगे।
 
बचपन में नीरज चोपड़ा बहुत मोटे थे
सेना में सूबेदार 23 वर्षीय नीरज चोपड़ा की सफलता की कहानी ओलंपिक खेलों से शुरू नहीं हुई बल्कि इसके लिए लंबा संघर्ष करके इस मुकाम तक पहुंचे हैं। नीरज पानीपत के छोटे से गांव खंडरा के संयुक्त परिवार से आते हैं। बचपन में वह अन्य बच्चों की तुलना में काफी मोटे थे। फिटनेस के लिए घरवालों ने उन्हें जिम भेजना शुरू कर दिया। इसी बीच जिज्ञासावश वह एक दिन पास के ही मैदान में जैवलिन थ्रो कर रहे खिलाडिय़ों को देखने चले गए।

उन्होंने भी आग्रह कर खिलाडिय़ों से जैवलिन लेकर शानदार थ्रो किया तो वहां पर मौजूद कोच उनकी प्रतिभा के कायल हो गए। कोच ने उनके परिवार से बात कर उन्हें जैवलिन थ्रो के खेल को अपनाने की सलाह दी। उन्होंने कोच की सलाह को मानते हुए इस खेल में हाथ आजमाने का फैसला कर लिया।
आर्थिक स्थिती के कारण नहीं खरीद सकते थे 1.5 लाख का जैवलिन
महंगा खेल होने की वजह से नीरज के सामने आर्थिक हालत आड़े आ गई। उनके संयुक्त परिवार में उनके माता-पिता के अलावा तीन चाचा के परिवार भी शामिल हैं। एक ही छत के नीचे रहने वाले 19 सदस्यीय परिवार में चचेरे 10 भाई बहनों में नीरज सबसे बड़े हैं। ऐसे में वह परिवार के लाड़ले भी हैं। परिवार की हालत ठीक नहीं थी और उसे 1.5 लाख रुपये का जैवलिन नहीं दिला सकते थे।

उनके पिता सतीश चोपड़ा और चाचा भीम ने जैसे तैसे सात हजार रुपये जोड़े और उन्हें अभ्यास के लिए एक जैवलिन लाकर दिया। एक बार खेल मैदान में उतरने के बाद नीरज ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक सफलता हासिल करते चले गए।
 
बिना कोच वीडियो देख दूर की कमियां
जीवन में उतार चढ़ाव का सिलसिला जारी रहा और एक समय ऐसा भी आया जब नीरज के पास कोच नहीं था। मगर नीरज ने हार नहीं मानी और यूट्यूब चैनल से विशेषज्ञों की टिप्स पर अमल करते हुए अभ्यास के लिए मैदान में पहुंच जाता। वीडियो देखकर अपनी कई कमियों को दूर किया। इसे खेल के प्रति उनका जज्बा कहें कि जहां से भी सीखने का मौका मिला उन्होंने झट से लपक लिया।
 
वर्ष 2016 में विश्व जूनियर चैंपियनशिप में 86.48 मीटर का थ्रो कर रिकॉर्ड बनाया। बाद में दक्षिण एशिया खेलों में गुवाहटी में 82.23 मीटर थ्रो कर राष्ट्रीय रिकार्ड की बराबरी की। कॉमनवैल्थ खेलों में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। 2018 में जर्काता में एशिया खेलों में 88.06 मीटर का थ्रो कर नया रिकार्ड बनाया। हाल ही में पटियाला में 88.07 मीटर जैवलीन फेेंक कर अपना नया रिकार्ड बनाया।
जैवलिन ही नहीं जवाब भी बेहतरीन, पीएम हुए थे मुरीद
पिछले दिनों टोक्यो ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाडिय़ों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बातचीत कर रहे थे। श्री मोदी द्वारा हाल ही में उनको लगी चोट के बारे में पूछे जाने पर नीरज चोपड़ा ने जवाब दिया कि चोट तो खेल का हिस्सा है, चिंता की कोई बात नहीं। उनका दमदार उत्तर सुनकर प्रधानमंत्री भी उनके मुरीद हो गए।
नीरज के पिता सतीश चोपड़ा ने हाल ही में बताया था कि फाइनल से पहले होने वाली स्पर्धा को लेकर उनके परिवार की पिछली रात बैचेनी में बीती। सारा परिवार तड़के करीब चार बजे सोकर उठा और नहा-धोकर पूजा अर्चना की और पांच बजे ही टीवी खोल कर बैठ गए।

नीरज ने जैसे ही पहला थ्रो किया तो परिवार खुशी से झूम उठा और फिर शुरू हुआ लड्डू बंटने का सिलसिला जो दिनभर बधाई देने के लिए आने तक चलता रहा। परिवार को पूरा भरोसा था कि नीरज स्वर्ण देश की झोली में डालेगा,और आज यह भरोसा सच साबित हुआ।(वार्ता)