National Song Vande Mataram: वंदे मातरम् भारतीय आत्मा को दर्शाता राष्ट्रगीत है, जो भारत माता के प्रति प्रेम और भक्तिभाव को जाग्रत करता है। यह गीत राष्ट्रभक्ति का एक सशक्त, प्रेरणादायक और ओजस्वी मंत्र है।
हमारे राष्ट्रगीत वंदे मातरम् की रचना श्री बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875 ई. में की थी और यह गीत उनके उपन्यास 'आनंदमठ' में सम्मिलित है। कुछ स्रोतों का मानना है कि यह सबसे पहले साहित्यिक पत्रिका 'बंगदर्शन' में प्रकाशित हुआ था। गीत की रचना 7 नवंबर 1875 को पूरी हुई थी। इसी ऐतिहासिक तिथि को हाल के वर्षों में इसकी 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में देश भर में उत्सव और सामूहिक गायन आयोजित किए जाने का फैसला हुआ है।
वैसे तो स्वतंत्रता उपरांत वंदे मातरम् को 24 जनवरी, 1950 को भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया था। लेकिन इसका पहला गायन इससे बहुत पहले 1896 ई. में कोलकाता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में हुआ था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता एम. रहीमतुल्ला सयानी ने की थी। यह गीत भले ही बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखा गया था, लेकिन इसे स्वरबद्ध रवींद्रनाथ टैगोर ने किया था। कुछ स्रोतों का यह भी दावा है कि इसे जदुनाथ भट्टाचार्य ने संगीतबद्ध किया था।
वंदे मातरम् स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण गीत: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा होने से इसका गहरा ऐतिहासिक महत्व है। यह स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणास्रोत था, जिसने जन-जन में देशभक्ति की ज्योत जलाई। यह राष्ट्र भक्ति का वह गूंजित मंत्र बना, जिसे सुनकर अंग्रेज भयभीत हो जाते थे। इसका संगीत तथा लय अत्यंत मधुर और प्रभावी है। इसका शब्द-शब्द हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं की याद दिलाते हुए हमारी एकता और भाईचारे से जोड़ता है।
हालांकि 1937 में, मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग ने वंदे मातरम् के कुछ हिस्सों पर आपत्ति जताई, जिसमें भारत मां का यशोगान करते हुए लिखा गया है - तोमराई प्रतिमा गढ़ी मंदिरे-मंदिरे...!!! यह पंक्तियां मूर्ति पूजा को इंगित करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप, जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस कार्यसमिति ने 29 अक्टूबर, 1937 को एक बयान पारित कर यह निर्णय लिया कि सार्वजनिक समारोहों में केवल वंदे मातरम् के पहले दो पद ही गाए जाएं, जिन्हें गैर-आपत्तिजनक माना गया था। हालांकि, जिन्ना को इससे भी संतुष्टि नहीं मिली और 1938 में वह इसे पूरी तरह त्यागने की मांग करने लगा।
तब नेहरू ने विवादित अंशों को हटाने या सीमित करने का निर्णय लिया था ताकि मुस्लिम लीग की आपत्तियों के बावजूद इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया जा सके। परन्तु, हमारे राष्ट्रगीत के अंश हटाने पर जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उदय हुआ तब से यह निर्णय अस्वीकार कर दिया गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रारंभ से ही मानना है कि यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा है और इसमें भारत माता की अनुपम स्तुति है और इसे पूरा गाने का निर्णय लिया। बस तब से लेकर आज तक हमारा राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् संघ के हर आयोजन में पूरा गाया जाता है। यह भारत माता की स्तुति संस्कृत और बांग्ला भाषा में लिखी गई है। आइए, इसके मूल रूप से लिखी प्रत्येक पंक्ति का सरल हिंदी अर्थ समझते हैं-
वन्दे मातरम्!
इसका अर्थ है, हे मां मैं तुम्हें प्रणाम करती हूं। मां जन्मदात्री होती है, पूजनीय और ममता धारे होती है। वैसे ही मां भारती भी हम भारतवासियों का भरण-पोषण करती है।
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्, शस्य-श्यामलाम् मातरम्॥ वन्दे मातरम् ॥1॥
हमारी मां भारती शुद्ध मीठे जल वाली हैं (जिसमें गंगा, यमुना सहित 200 प्रमुख नदियां प्रवाहित होती हैं)। यह धरती मां फलों वाले वृक्षों से लदी है। केरल के तट (मलय) से बहती हवा शीतलता देती है। हे मां, तुम रबी, खरीफ, जायद जैसी विभिन्न फसलों से हरी-भरी (शस्य-श्यामला) हो। तुम प्रणाम योग्य हो।
शुभ्र-ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्, फुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्, सुहासिनीम् सुमधुर-भाषिणीम्। सुखदाम् वरदाम् मातरम्॥ वन्दे मातरम् ॥2॥
मां भारती की रात्रि चांद के प्रकाश से चमकीली (शुभ्र-ज्योत्सनाम्), प्रसन्न (पुलकित) और रोमांचित करने वाली है। यह खिले हुए फूलों (फुल्ल कुसुमित) और सुसज्जित पेड़ों (द्रुमदल) से शोभायमान है। मां तुम सदैव हर्षित, प्रसन्न रहने वाली और सुमधुर भाषा बोलने वाली हो। तुम सुख देने वाली और वरदान देने वाली हो।
कोटि-कोटि कंठ कल-कल निनाद कराले, कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले, अबला केन मा एत बले, बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्, रिपुदलवारिणीम् मातरम्।। वन्दे मातरम्।। 3।।
करोड़ों कंठ मधुर आवाज में तुम्हारी प्रशंसा को गुनगुना रहे हैं, और करोड़ों हाथों में तुम्हारी रक्षा के लिए धारदार तलवारें (खरकरवाले) निकली हुई हैं। मां, कौन कहता है कि तुम अबला हो? तुम बहुत बल धारण की हुई हो (बहुबल धारिणीम्), तुम सबको तारने वाली और शत्रुओं को समाप्त करने वाली (रिपुदलवारिणीम्) हो।
तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि हृदि तुमि मर्म, त्वं हि प्राणा: शरीरे, बाहु ते तुमि माँ शक्ति, हृदये तुमि मां भक्ति, तोमाराई प्रतिमा गढ़ी मंदिरे-मंदिरे॥ वन्दे मातरम्।। 4।।
मां, तुम ही विद्या हो, तुम ही धर्म हो, तुम ही हृदय और तुम ही तत्व (मर्म) हो। तुम ही शरीर में स्थित प्राण हो। हमारी बाहों में जो शक्ति है, वह तुम ही हो, और हृदय में जो भक्ति है, वह भी तुम ही हो। तुम्हारी ही प्रतिमा हर मन्दिर में गढ़ी हुई है या विराजती है।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणीम्, कमला कमलदलविहारिणी, वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्, नमामि कमलाम्। अमलाम्, अतुलाम्, सुजलाम्, सुफलाम्, मातरम्।।5।।
तुम ही दस अस्त्र धारण की हुई दुर्गा हो, तुम ही कमल पर आसीन लक्ष्मी (कमला कमलदलविहारिणी) हो, और तुम ही वाणी एवं विद्या देने वाली (सरस्वती) हो। तुम्हें प्रणाम। तुम अति पवित्र (अमलाम्), जिसकी कोई तुलना न हो (अतुलाम्), जल देने वाली और फल देने वाली हो।
श्यामलाम्, सरलाम्, सुस्मिताम्, भूषिताम्, धरणीम्, भरणीम्, मातरम्॥ वन्दे मातरम् ॥6॥
मां तुम श्यामवर्ण वाली, अति सरल (कपट रहित), सदैव मधुर हंसती हुई, सुसज्जित (भूषिताम्), धारण करने वाली (धरणीम्) और भरण-पोषण करने वाली (भरणीम्) हो।
इस तरह हमारे राष्ट्रगीत वंदे मातरम् का अर्थ समझने पर एक भी शब्द विवादित नहीं है। यह हमें अपनी राष्ट्रीय पहचान और गौरव का अनुभव कराता है। यह सच है कि इस गीत को लेकर कुछ विवाद भी हुए हैं।