गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. होली
  4. holashtak 2021 information in Hindi
Written By

होलाष्टक 2021 : 8 आठ दिनों तक नहीं होंगे शुभ कार्य, जानें कारण और महत्व

होलाष्टक 2021 : 8 आठ दिनों तक नहीं होंगे शुभ कार्य, जानें कारण और महत्व - holashtak 2021 information in Hindi
होलाष्टक 2021: होलाष्टक के दौरान किसी भी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं।
    
होलाष्टक मत मतांतर से 21-22 मार्च को लग गया है और यह 28 मार्च तक रहेगा। होलाष्टक के दौरान किसी भी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। प्रत्येक कार्य शुभ मुहूर्त का विचार करके करना चाहिए। यदि कोई भी कार्य शुभ मुहूर्त में किया जाता है तो वह उत्तम फल प्रदान करता है। इस धर्म धुरी से भारतीय भूमि में प्रत्येक कार्य को सुसंस्कृत समय में किया जाता है, अर्थात् ऐसा समय जो उस कार्य की पूर्णता के लिए उपयुक्त हो। इस प्रकार प्रत्येक कार्य की दृष्टि से उसके शुभ समय का निर्धारण किया गया है। 
 
वास्तव में होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है। होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में रहते हैं जिसके कारण शुभ कार्यों का अच्छा फल नहीं मिल पाता है। होलाष्टक प्रारंभ होते ही प्राचीन काल में होलिका दहन वाले स्थान की गोबर, गंगाजल आदि से लिपाई की जाती थी। साथ ही वहां पर होलिका का डंडा लगा दिया जाता था जिनमें एक को होलिका और दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है।
 
होलाष्टक के दौरान उग्र स्वभाव में रहते हैं ग्रह
 
होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है जिसके कारण कई बार उससे गलत फैसले भी हो जाते हैं जिसके कारण हानि की आशंका बढ़ जाती है। जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा और वृश्चिक राशि के जातक या चंद्र छठे या आठवें भाव में हैं उन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए।
 
होलाष्टक का पौराणिक महत्व
माघ पूर्णिमा से होली की तैयारियां शुरु हो जाती है। होलाष्टक आरंभ होते ही दो डंडों को स्थापित किया जाता है, इसमें एक होलिका का प्रतीक है और दूसरा प्रह्लाद से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि होलिका से पूर्व 8 दिन दहन की तैयारी की जाती है। जब प्रहलाद को नारायण भक्ति से विमुख करने के सभी उपाय निष्फल होने लगे तो, हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को इसी तिथि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को बंदी बना लिया और मृत्यु हेतु तरह तरह की यातनाएं देने लगे, किन्तु प्रहलाद विचलित नहीं हुए। इस दिन से प्रतिदिन प्रहलाद को मृत्यु देने के अनेकों उपाय किये जाने लगे किन्तु भगवत भक्ति में लीन होने के कारण प्रहलाद हमेशा जीवित बच जाते हैं।
 
इसी प्रकार सात दिन बीत गए आठवें दिन अपने भाई हिरण्यकश्यपु की परेशानी देख उनकी बहन होलिका (जिसे ब्रह्मा द्वारा अग्नि से न जलने का वरदान था) ने  प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में भस्म करने का प्रस्ताव रखा जिसे हिरण्यकश्यपु ने स्वीकार कर लिया। परिणाम स्वरूप होलिका जैसे ही अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में लेकर जलती आग में बैठी तो, वह स्वयं जलने लगी और प्रहलाद पुनः जीवित बच गए क्योंकि उनके लिए अग्निदेव शीतल हो गए थे। तभी से भक्ति पर आघात हो रहे इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है। भक्ति पर जिस-जिस तिथि-वार को आघात होता उस दिन और तिथियों के स्वामी भी हिरण्यकश्यपु से क्रोधित हो उग्र हो जाते थे।
 
तभी से फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन से ही होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है, इस दिन से होलिका दहन के दिन तक इसमें प्रतिदिन कुछ लकड़ियां डाली जाती हैं, पूर्णिमा तक यह लकड़ियों का बडा ढेर बन जाता है। पूर्णिमा के दिन शुभ मुहूर्त में अग्निदेव की शीतलता एवं स्वयं की रक्षा के लिए उनकी पूजा करके होलिकादहन किया जाता है। जब प्रह्लाद बच जाते है, उसी ख़ुशी में होली का त्योहार मनाते हैं। ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के अपराध में कामदेव को शिव जी ने फाल्गुन की अष्टमी में भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने उस समय क्षमा याचना की और शिव जी ने कामदेव को पुनः जीवित करने का आश्वासन दिया। इसी खुशी में लोग रंग खेलते हैं।