Nanda Saptami 2025: नंदा सप्तमी पर्व, जानें इस व्रत का दिव्य महत्व और रोचक जानकारी
आइए नंदा सप्तमी 2025 की तिथि और इसके दिव्य महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं...
2025 में नंदा सप्तमी पर्व 27 नवंबर को मनाया जाएगा।
नंदा सप्तमी का महत्व: नंदा सप्तमी का व्रत मुख्य रूप से तीन प्रमुख शक्तियों की आराधना के लिए जाना जाता है: देवी नंदा, भगवान श्री गणेश और सूर्य देव।
देवी नंदा और मां पार्वती का स्वरूप: नंदा देवी को माता पार्वती या देवी दुर्गा का ही एक स्वरूप माना जाता है। वह नवदुर्गा में से एक हैं और विशेष रूप से इनका पूजन प्राचीन काल से हिमालय क्षेत्र/ उत्तराखंड की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। नंदा सप्तमी का व्रत मार्गशीर्ष या अगहन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है।
महत्व: इस दिन देवी नंदा की पूजा करने से भक्तों को सर्व-सुख सौभाग्य बल और ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह व्रत जीवन में शांति और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए बहुत फलदायी माना जाता है। चूंकि यह सप्तमी तिथि को पड़ता है इसलिए इसे 'भानु सप्तमी' या 'सूर्य सप्तमी' भी कहा जाता है।
इसी वजह से इस दिन सूर्य देव की आराधना करने का विशेष महत्व है। सूर्य देव तेज आरोग्य या अच्छा स्वास्थ्य और ऊर्जा के प्रतीक हैं। सूर्य की उपासना से व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है और लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।
प्रथम पूज्य गणेश जी का पूजन: इस दिन भगवान श्री गणेश की भी विधि-विधान से पूजा की जाती है जो कि किसी भी शुभ कार्य या देवी-देवता के पूजन से पहले आवश्यक है। गणेश जी की पूजा से व्रत में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं और पूजा सफल होती है।
नंदा सप्तमी व्रत से लाभ: यह व्रत श्रद्धा और भक्ति से करने वाले भक्तों को सूर्य देव की कृपा से स्वास्थ्य लाभ और दीर्घायु प्राप्त होती है। यह व्रत सभी प्रकार के दोषों को खत्म करने वाला और मन को शांति प्रदान करने वाला माना जाता है। देवी नंदा के आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
कुमाऊं और गढ़वाल की विशेषता: नंदा सप्तमी का महत्व उत्तराखंड में और भी अधिक है, क्योंकि यहां यह एक क्षेत्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में विशेष रूप से नंदा देवी महोत्सव मनाया जाता है। यहां की लोक संस्कृति में यह पर्व अत्यधिक सम्मानित है। और इस दौरान भव्य शोभायात्राएं तथा धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।
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