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लघुकथा : भोले-भक्त

लघुकथा : भोले-भक्त - Short Story In Hindi
बचपन में मां जब देवी-देवताओं की कहानियां सुनाया करती थीं, कमरे की दीवार पर जो भोले की तस्वीर टंगी थी, उसमें उस भोले-भक्त वीरू की अनायास श्रद्धा  उत्पन्न हो गई। पैरों से लाचार भगवान ही उसका सहारा था। जब बड़ा हुआ तब तक उसके मन में भोले के प्रति एक दृढ़ता घर कर गई थी।



जब लोगों को कांवर चढ़ाने के लिए जाते देखता, तो मां से अक्सर प्रश्न रहता - "मां ये लोग कहां जा रहे हैं ? मां क्या मैं भी जाऊं ? बालमन को समझाना बड़ा मुश्किल होता है। तब मां केवल एक ही बात कहती, "बेटा बड़ा होकर...। बड़ा होने पर मां से अनुमति लेकर अपनी कांवर उठा, कैलाश मंदिर की ओर भोले के दर्शन के लिए चल पड़ा।
           
"जय बम-बम भोले, जय बम-बम भोले" का शांत भाव से नाद किए, सड़क पर दंडवत होता, मौन भाव से चुपचाप चला जा रहा था। सड़क और राह की बाधाएं उसको डिगा नहीं पा रही थी, एक असीम भक्ति थी उसके भाव में। सावन के महीने में कैलाश का अपना महत्व है। भोले बाबा का पवित्रता स्थल है। यह भोले भक्त महीने भर निराहार रहता है। आस्था भी बड़ी अजीब चीज है, भूत सी सवार हो जाती है, कहीं से कहीं ले जाती है। 
 
पैरों में बजते घुंघरुओं की आवाज, कांवरियों का शोरगुल उसकी आस्था में अतिशय वृद्धि करता था। सड़क पर मोटर गाड़ियों और वाहनों की पौं-पौं उसकी एकाग्रता को डिगा न पाती थी। राह के कंकड़-पत्थर उसके सम्बल थे। सावन मास में राजेश्वर, बल्केश्वर, कैलाश, पृथ्वी नाथ इन चारों की परिक्रमा उसका विशेष ध्येय था । 17 साल के इस युवक में शिव दर्शन की ललक देखते ही बनती थी। 
 
दृढ़ प्रतिज्ञ इस युवक ने सावन के प्रथम सोमवार उठकर माता के चरणस्पर्श कर जो कुछ कहा, उसका आशय समझ मां ने व्यवधान न बनते हुए "विजयी भव" का आशीर्वाद दिया और वह चल दिया। साथ में कुछ नहीं था, चलते फिरते राहगीर और फुटपाथ पर बसे रैन बसेरे ही उसके आश्रय-स्थली थे।
 
आकाश में सूर्य अपनी रश्मियों के साथ तेजी से आलोकित हो रहा था, जिसकी किरणों से जीव-जगत और धरा प्रकाशित हो रहे थे। इन्हीं धवल चांदनी किरणों में से एक किरण भोले-भक्त पर पड़ रही थी। दिव्यदृष्टि से आलौकित उसका भाल अनोखी शोभा दे रहा था। रश्मि-रथी की किरणों के पड़ने से जो आर्द्रता उसके अंगों पर पड़ रही थी, वो ऐसी लग रही थी जैसे नवपातों पर ओस की बूंदें मोती जैसी चमक रही हों।
 
मगर भक्त इन सब बातों से बेखबर लगातार रोड-साइड दण्डवत होता हुआ भोले बाबा का नाम लिए चला जा रहा था। हर शाम ढलते ही उसे अपने आगोश में ले टेम्परेरी बिस्तर दे देती थी, चांद की चांदनश उसका वितान थी, आकाश में चमकते तारे पहरेदार थे। सब उसके मार्ग में साथ-साथ थे। अंत में कैलाश मंदि‍र पहुंच उसने साष्टांग भोले को नमन किय किया।
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