चौबेपुर गांव की प्रायमरी पाठशाला में प्रो. पांडेय क्लास सिक्स के बच्चों को पढ़ा रहे थे। श्यामपट्ट पर उन्होंने लिखा- 'नॉलेज' और सामने बैठे रामप्यारे से कहा कि बताओ क्या लिखा है?
रामप्यारे ने तेज स्वर में जवाब दिया- 'कनऊ लद गए'।
पूरी क्लास ठहाकों से गूंज उठी। प्रो. पांडेय विस्मयभरी नजरों से क्लास और रामप्यारे को देख रहे थे, जैसे वे दोनों प्रो. पांडेय को मुस्कराते हुए कह रहे हों कि हम तो राम के प्यारे हैं। हमें पढ़ाई-लिखाई की क्या जरूरत?
प्रोफेसर पांडेय वैसे तो आईआईटी कानपुर से बी-टेक हैं, लेकिन गांव को कुछ देने की ललक में उन्होंने बीएड कर लिया और मल्टीनेशनल कंपनी की जॉब छोड़कर गांव की प्रायमरी पाठशाला में पढ़ाने लगे।
अब कुछ बातें चौबेपुर गांव के बारे में। शहर से 10 किमी दूर है चौबेपुर गांव। गांव के प्रधान हैं बलराम यादव। पिछले 10 साल से वे ही गांव के प्रधान हैं। पिछले साल प्रधानी के इलेक्शन में सीट बड़ी मुश्किल से निकली। काफी पैसा खर्च कर बलराम यादव फिर से जीतकर आए हैं। अब पैसा खर्च किया है तो निकलेगा भी गांव से ही, सो अब नरेगा में मजदूरी का मामला हो या गांव में खरंजा बिछवाने या हैंडपंप लगवाने का, यादवजी बिना कमीशन लिए कोई कार्य नहीं करते हैं।
यदि यादवजी मान भी जाएं तो उनकी धर्मपत्नी कलावती यादव उन्हें ऐसा नहीं करने देती हैं और यादवजी के कुछ कहने पर वे बड़े जोर से चिल्लाती हैं- 'पूरा घर लुटाए के अबकी बार प्रधान बने हों, मेरी पूरी जिंदगी तुम्हारी मोटरसाइकल के पिछवाड़े पर बैठे गुजर गई और बगल के गांव के प्रधानजी के यहां कब से बोलेरो आ गई है। तब तुमहू जल्दी बोलेरो नहीं ले आओगे तो मैं छोड़कर चली जाऊंगी बाल-बच्चों समेत अपने मायके।'
और बलरामजी राम-राम जपते हुए धीरे से बुदबुदाते हैं- 'भाग्यवान, जैसा आप कहेंगी, वैसा करूंगा।'
बलराम यादव के मकान से सटा हुआ मकान है श्रीकृष्ण यादव का। बलराम यादव और श्रीकृष्ण यादव आपस में रिश्तेदार हैं और श्रीकृष्ण, बलराम के छोटे भाई की तरह हैं। प्रधानी का सारा काम श्रीकृष्णजी से पूछकर ही करते हैं। एक तरह से मिनी प्रधान हैं श्रीकृष्णजी।
प्रधानजी के ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर साहब से बहुत ही अच्छे संबंध हैं और सिंह साहब के पीए सुदामा मिश्राजी तो उनके अपने आदमी हैं।
प्रो. पांडेय और प्रधानजी से छत्तीस का आंकड़ा है। प्रो. पांडेय ने गांव के कुछ लड़कों के साथ मिलकर 'गांव बचाओ' समिति बनाई है जिसके द्वारा वे सूचना के अधिकार प्रार्थना पत्रों के माध्यम से रोज गांव के लिए आए खर्चों का ब्योरा प्रधानजी से मांगा करते हैं या ये कहिए कि अपनी लिखा-पढ़ी से उन्होंने प्रधानजी की नाक में दम कर रखा है।
प्रधानजी को जब देखो, तब ये कहते सुना जा सकता है- 'ई पडवा हमें जिए नहीं देख रहा है।'
प्रो. पांडेय से परेशान प्रधानजी ही नहीं हैं। परेशान उनकी पत्नी स्मिता पांडेय भी हैं, जो अक्सर कहा करती हैं- 'अरे पांडेयजी, कहां आप फंसे हुए हैं। अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर गांव के गली-कूचे में घूम रहे हैं। अरे, कुछ-कुछ पैसा प्रधान को दीजिए, कुछ बीएसए को दीजिए और करिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी। आपकी बारी कमीशन से घर बैठे आ जाएगी। इतनी जलालत में क्यों फंसते हैं। तमाम मलाईदार पोस्टें आई हैं। किसी में भी चयन हो गया, तो समझिए भाग्य खुल जाएंगे। आप तो गांव में नाम कमाएंगे ही, हमारे भी ठाठ निराले हो जाएंगे। नहीं तो जाइए लीजिए सैलरी। मैं चली अपने मायके। नहीं तो लीजिए मैगसेसे अवॉर्ड।
फिर धीरे से बुदबुदाई- 'बाप राज न खाए, न पाएन खीस निपोरे गए पराएन।' लेकिन प्रो. पांडेय हैं कि उनके कान पर जूं ही नहीं रेंगती। अपनी धुन के पक्के हैं, करेंगे गांव की सेवा ही।
गांव के कुछ लड़कों ने प्रो. पांडेय को सूचना दी कि प्रधान बलराम यादव ने गांव में सड़क बनवाने के नाम पर खर्चे के रूप में 5 लाख रुपए दिखाए हैं। सड़क बलराम यादव के घर से श्रीकृष्ण यादव के घर तक बनी है। दोनों के घरों के बीच की दूरी 1 किमी दिखाई गई है, बिल पास हो गया है, मौके पर निरीक्षण भी हो गया है, जबकि बलराम और श्रीकृष्ण के घरों की दीवारें आपस में मिली हुई हैं।
प्रो. पांडेय सूचना सुनकर उछल पड़े। अरे घोर भ्रष्टाचार! अब प्रधान से लेकर ब्लॉक डेवलपमेंट अधिकारी को कोई नहीं बचा सकता। मैं शासन से जांच करवाऊंगा। चलो सूचना के अधिकार में निम्न सूचनाएं मांगते हैं- (1) बलराम और श्रीकृष्ण के घरों की कितनी दूरी है? (2) प्रधान बलराम यादव के खिलाफ सरकारी पैसे के दुरुपयोग के लिए क्या कार्रवाई की गई? (3) अधिकारी ने मौके पर जो जांच की, उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। (4) भ्रष्ट प्रधान के खिलाफ कब तक कार्रवाई हो जाएगी? उपरोक्त का जवाब 30 दिनों के भीतर भेजना सुनिश्चित करें।
पूरे गांव में हल्ला हो गया कि प्रधान बलराम यादव बचेंगे नहीं। सूचना के अधिकार का जवाब ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर सिंह साहब को देना है। सिंह साहब भी प्रश्न देखकर घबरा गए। अजीब मुसीबत सामने आ गई। बलराम यादव भागकर सिंह साहब के पास आए और कहा कि साहब जैसा आपने कहा, वैसा हमने कर दिया। अब आप ही नाव पार लगाइए। सिंह साहब ने अपने पीए मिश्राजी को याद किया और कहा कि मिश्राजी अब आप ही कुछ रास्ता निकालिए।
मिश्राजी ने विनीत भाव से जवाब दिया कि सरकार आपने हम पर भरोसा किया है तो जरूर कुछ रास्ता निकालेंगे। बचपन से पिताजी मुझे आईएएस बनाना चाहते थे। इसी चक्कर में कभी गाय के घी के अतिरिक्त कुछ और का सेवन नहीं करने दिया। आईएएस तो नहीं बन पाए, लेकिन दिमाग हमारा मजबूत हो गया है। दो दिन का समय दीजिए।
आज दो दिन बाद उन्होंने सूचना के अधिकार के आवेदन पत्र का जवाब दे दिया, जो निम्नवत है- बलराम और श्रीकृष्ण द्वापरकाल के महापुरुष हैं। इनके बारे में जानकारी मथुरा प्रशासन से मांगी गई है। चूंकि खतना-खतौनी निकालने में काफी समय लगेग अत: जानकारी उपलब्ध कराने के लिए मथुरा प्रशासन से संपर्क करें। ब्लॉक की तरफ से कोशिश जारी है।
जिस व्यक्ति ने सड़क बनाने का मौके पर निरीक्षण किया, वह भी इस विभाग से संबंधित नहीं है और सेवानिवृत्त हो गया है। उसकी जानकारी संबंधित विभाग में है अत: वहां से आगे फिलहाल कोशश जारी है। भ्रष्ट व्यक्ति को पकड़ने और सजा दिलवाने की कोशिश ब्लॉक द्वारा जारी है और नाम तय होते ही एफआईआर दर्ज कराई जाएगी।
पांडेयजी को जैसे ही जवाब की प्रति प्राप्त हुई कि लगा कि कोई बड़ा तीर मार दिया उन्होंने। लेकिन जवाब पाकर उनके होश फाख्ता हो गए और वे धीरे से बुदबुदाए- सन् 1947 से...!