अनिरुद्ध जोशी|
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बुधवार, 12 फ़रवरी 2020 (12:29 IST)
उनकी इस हरकत को देखकर रुक्मणी ने उनसे पूछा- भगवन! अचानक आपको यह क्या हुआ कि आप भोजन करते-करते दौड़े और फिर द्वार पर ही ठीठक कर रुके और फिर पुन: लौट आए। आखिर कहां जाना चाहते थे और विचार बदल गया?
भगवान कृष्ण ने निराश होकर कहा- प्रिये! संकट में एक व्यक्ति मुझे पुकार रहा था, इसीलिए मैं उसकी मदद के लिए दौड़ा, लेकिन मैं वहां पहुंचता इससे पूर्व ही उस व्यक्ति ने अपनी आस्था बदल दी और वह किसी ओर को पुकारने लगा। तब मैं क्या करता, मैंने भी सोचा कि अब आराम से भोजन ही कर लिया जाए और उसे नियति पर छोड़ दिया जाए। उसने मुझ पर थोड़ा भी विश्वास और धैर्य नहीं रखा। वह व्यक्ति कभी भी एकनिष्ठ नहीं रह सकता, जिनमें विश्वास और धैर्य नहीं।