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Written By WD

लघुकथा : मन्नत

शिखा पलटा

Short Story | लघुकथा : मन्नत
गर्मी हो या सर्दी माया रोज सुबह अपना मुस्कुराता हुआ चेहरा लेकर ठीक 9 बजे कॉलोनी के सभी घरों को खटखटाती हुई जोर की चिल्लाती 'अपने कूड़ेदान का कचरा खाली करो'....सभी अपना कूड़ेदान उसे खाली करने के लिए दे देते। कभी कभी मां उसे चाय और नाश्ता भी दे देती। उसका मुस्कुरता हुआ चेहरा देख कर ऐसा लगता है जैसे जिंदगी से उसे कभी कोई शिकायत नहीं।

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कल मां की नजर उसके पैरों पर पड़ी। उसके पैर लाल थे। देख कर ऐसा लग रहा था जैसे गर्मी में नंगे पैर चलने के कारण उसे फफोले पड़ गए हैं। चेहरे पर वही मुस्कान, दर्द की शिकन तक नहीं। मां ने उसे कहा इतनी गर्मी में नंगे पैर घूमती हो, मैं तुम्हें चप्पल दे देती हूं।

मुस्कुराते हुए मां से बोली, नहीं भाभी, मेरी बेटी पेट से हैं, उसकी पहले ही दो लड़कियां हैं, इस बार मैंने मन्नत मांगी है भगवान से, उसे बेटा हो जाए..उसका परिवार भी पूरा हो जाएगा और ससुराल में उसकी इज्जत भी बढ़ जाएगी... मां चुपचाप आश्चर्य से उसे देखती रह गई।