मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. World Earth Day

पृथ्वी दिवस पर कविता : सोचो क्यों कर जिए जा रहे हैं?

पृथ्वी दिवस पर कविता : सोचो क्यों कर जिए जा रहे हैं? - World Earth Day
सोचो ज़रा 
अगर हम पेड़ होते
जग को ठंडी छांह देते
फल,पत्ते,लकड़ी भी
कितने उपयोगी होते....!!
नन्ही चिरैय्या अगर होते
मीठी बोली से जग मोह लेते
फूल होते तो रंगों से अपने
सजाते कितने मन आंगन
खुशबूओं से भर देते जीवन
सोचो अगर होते पवन 
जन जन को जीवन देते
शीतलता जग में भर देते
अगर होते नदी ताल तलैय्या
निर्मल जल कल कल कर
हर कंठ भिगोते...खुश होते
सोचो अगर होते बादल.....
बरस जाते तपती धरा पर
कण कण को भिगोते...
फसलों की हरी भरी दुनिया से
हर पेट में दाना पहुंचाते 
अगर होते अग्नि से
भोजन पका कर
क्षुधा बुझाते....
अगर होते धरती से
माँ बन जाते
गोद में लिए जीवों को
जीवन का गीत सुनाते.....
सोचो अगर होते हम 
गाय भैंस बकरी से
दूध सबके लिए दे पाते
सोचो ना अगर 
हम तितली,मोर,मछली
कुछ भी होते
जग को सुंदर ही तो बनाते
ये जो पाया मानव जीवन
व्यर्थ गंवा रहे हैं
हिंसा द्वेष ईष्या संग
लहू लोगों का बहा रहे हैं...??
जिस जीवन से
कर न सकें अगर 
भला किसी का....
सोचो क्यों कर जिए जा रहे हैं ??
पृथ्वी का भार केवल 
बढ़ा रहे हैं .....
सोचो इस जीवन में
क्या अच्छा कर पा रहे हैं 
सोचो ज़रा...