शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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अग्रचिंतन, समग्रचिंतन...!

अग्रचिंतन, समग्रचिंतन...! - poetry on democracy
प्रजातंत्र में विरोधी दलों का यों मिट जाना अच्छा नहीं है। 
सत्ता पार्टी के हाथों में निष्कंटक सत्ता का यों सिमट जाना अच्छा नहीं है। 
पर विरोधी दलों का संसद में गैर-जिम्मेदार, हंगामेबाजी से,
अब तक जो हुआ व्यवहार बचकाना अच्छा नहीं  है।।1।। 
 
जनता सब सुनती रहती है अपने कान हजार से। 
और देखती भी रहती है पैनी नज़र अपार से। 
अपने सामूहिक (अदृष्य) चिंतन से निर्णय लेती है सामयिक, सटीक,
कुकर्मियों को अंततः जमीन चटा देती है प्रबल प्रहार से।।2।। 
 
पिछले चुनावों में 'प्रजा' ने 'तन्त्र' को मजबूत ही किया है। 
कम्बख़्तो को नहीं बख्शा है, निष्ठावालों को पुरुस्कार दिया है। 
जनता के दरबार में न्याय है सर्वोपरि, मुरव्वतहीन,
अपना निष्पक्ष, सटीक निर्णय देकर सबको आगाह भी किया है।।3।। 
 
इसीलिए हम गाते हैं 'जन-गण-मन ' की जय हो। 
देश का जन-मत जागरूक, निष्पक्ष और निर्भय हो। 
वर्ग, धर्म या जाति, प्रलोभन सब से ऊपर उठकर,
भारत में दो मजबूत दलों वाली राजनीति का उदय हो।।4।।