बढ़ती महंगाई पर कविता - कुछ कम कर दो
ला सकते तो वापस ला दो,
उस सच्ची सच्चाई को।
भ्रष्टाचार को भंग कर दो,
कुछ कम कर दो महंगाई को।।
घपले पर घपला कब तक होगा,
कब तक भूखे मरेंगे लोग।
कब तक आबरू लुटती रहेगी।
कब तक रहेगा कुरिया में शोक।।
दिन दुपहरे लुटे खजाना।
बंद करो ढिठाई को।
कब तक रारी रार करेंगे,
कब जाएगी अन्याय की डोर।
कब आएगा न्याय का मौसम,
कब नाचेंगे आंगन में मोर।।
ऐसा नियम बना दो दाता,
छुए न लोग बुराई को।
भ्रष्टाचार को भंग कर दो,
कुछ कम कर दो महंगाई को।।