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poem on Kargil: मनकही

poem on Kargil: मनकही - poem on kargil
एक लौ उम्मीद की रौशन कर लो
एक डोर साथ की तुम थाम लो

कुछ मुट्ठी भर जवानों का 
मुश्किल है यलगार जान लो
 
सब जुङ जाओ एक हो जाओ
दुश्मन से है मिली ललकार जान लो

एक लौ उम्मीद की रौशन कर लो
एक डोर साथ की तुम थाम लो
 
एक साथ खङे हो शमशीर बनो  
सब छोङ चले घर बार मान लो
 
एक लौ उम्मीद की रौशन कर लो
एक डोर साथ की तुम थाम लो

अब वतन को देना हके यार
लहु चुकाएगा कर्जेयार ठान लो
 
एक लौ उम्मीद की रौशन कर लो
एक डोर साथ की तुम थाम लो
    
कुछ जख्म मिले भर जाएंगे
वतन पर जाँ निसार जान लो 
 
एक लौ उम्मीद की रौशन कर लो
एक डोर साथ की तुम थाम लो
 
फिर जन्में मादरे वतन की खातिर
ले कर जज्बात के तूफान ठान लो
       
एक लौ उम्मीद की रौशन कर लो
एक डोर साथ की तुम थाम लो