- डॉ. रामकृष्ण सिंगी
यों तो विरोध प्रदर्शन की,
सौ युक्तियां हमारे पास हैं।
सही युक्ति बस 'हंगामा' है,
बाकी सब बकवास है ।।1।।
लद गए दिन अब उपवासों के,
धरने के, घेरावों के।
मौन मार्च, काली पट्टी के,
या नुक्कड़ी सभाओं के।।
पुतला फूंक भी हुआ पुराना,
(पुतला फूंकते हाथ जले।)
अब न रैलियों में जुट पाती भीड़,
जो आती थी पहले।
इसीलिए अब तुरत-फुरत,
हंगामों में विश्वास है।
सही युक्ति तो 'हंगामा' है,
बाकी सब बकवास है ।।2।।
अब तो करो बस हंगामा,
चाहे संसद में या बाहर।
चौराहों पर, न्यायालय में,
सिनेमाघर या सड़कों पर।
किसी बयान या मुलाकात,
या छापे की कार्यवाही का बहाना हो।
मसला कोई उठा लो,
जिस पर मनचाहा हंगामा हो।
जन-मत, जन-हित की बातें सब,
अब दकियानूसी भड़ास है।
सही युक्ति तो 'हंगामा' है,
बाकी सब बकवास है ।।3।।
हंगामे से कीमती समय,
खो जाए अगर तो खोने दो।
हंगामों से स्पीकर भी असहाय,
हो जाए अगर तो होने दो।
होना चाहिए सचमुच अपने धन की,
बरबादी की परवाह जिसे,
वह करदाता ही आंख मींच
सो जाए अगर तो सोने दो।
भले ही हंगामा अपने वेतन-भत्तों का उपहास है।
सही युक्ति तो 'हंगामा' है, बाकी सब बकवास है ।।4।।