कविता : कितना सुन्दर लिखते हो
किताबी कीड़ा बन करके,
हमने शब्दों को तौला था।
महासभा के बीच में,
सुन्दर शब्दों को बोला था।
हर तरफ तालियां बजी थीं,
वाहवाही खूब मिलीं।
स्वर से अपने तार को,
हमने जब-जब खोला था।
महासभा के बीच में,
सुन्दर शब्दों को बोला था।
प्रश्न का उत्तर मिला था,
शोध और प्रतिशोध हुआ।
नए-नए शब्दों को अपने,
ऊंचाइयों में मैंने मोड़ा था।
महासभा के बीच में,
सुन्दर शब्दों को बोला था।