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हिन्दी कविता : अग्निकुंड
-पंकज सिंह
शीशे ने शीशा दिखलाया,
बवाल शीशे ने मचाया।
संजय क्या कर डाला,
दुर्योधन को पूज डाला।
इतराता है फिर रहा,
खिलजी मदमस्त हो रहा।
नाच-गाना दिखाना था,
पद्मावती ना चुनना था।
राजस्थान की धरोहर है,
सतीत्व का जौहर है।
कानूनी भाषा गढ़ रहा,
कहानी है कह रहा।
शीशा बाद में आया,
कैसे था चेहरा दिखलाया।
इज्जत की कहानी है,
पुरखों से जानी है।
शांतिकाल चल रहा,
युद्ध नहीं डरा रहा।
घिरा हुआ घर होता,
दुश्मन आंख उठाता दिखता।
गर्म खून नहीं खौलता,
अग्निकुंड नहीं जलता।
नाच-गाना तुझे दिखता,
कौन गिरा भूल जाता।
कहानी ही रहने देता,
लीला अपनी ना दिखाता।
बैठी राख ना उड़ाता,
अग्निकुंड ना जलता।