हिन्दी कविता : अन्नदाता
वे देश के अन्नदाता हैं
वो तमाम कष्ट सह
पेट पालता है तमाम जनता का
अकाल, ओलावृष्टि, अतिवृष्टि
जैसी तमाम विपदाएं आ जाती हैं
उसके पास एक परम मित्र की तरह
या डायबिटीज की तरह
बिना दरवाजे की कॉलबेल को बजाए
वह जिंदा रहता
इन तमाम विपदाओं को झेलता
मृत्यु से दो-दो हाथ करता
और देखता सुनता रहता है
तमाम दृश्य और श्रव्य माध्यमों पर
इन विपदाओं को रोकने के
सरकारी प्रयास को
बिना किसी प्रश्नचिन्ह के?