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Written By WD

बढ़ी जो धूप सफर में तो...

-देवमणि पांडे

देवमणि पांडे
चमन को फूल घटाओं को इक नदी मिलती
हमें भी काश कभी अपनी ज़िंदगी मिलती

जिधर भी देखिए दामन हैं तरबतर सबके
कभी तो दर्द की शिद्दत में कुछ कमी मिलती

बढ़ी जो धूप सफर में तो ये दुआ माँगी
कहीं तो छाँव दरख़्तों की कुछ घनी मिलती

बहार आई मगर ढूँढती रही आँखें
कोई तो शाख़ चमन में हरी भरी मिलती

उगाते हम भी शजर एक दिन मोहब्बत का
तुम्हारे दिल की जमीं में अगर नमी मिलती।