कैसे बीतेंगे आने वाले पाँच बरस, यह तय करेगा आपका एक वोट, फिर ना कोई सोए भूखा, ....... कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।
अब ना हो ऐसे चीर हरण, ना शीश कटें जवानों के, हर खेत में लहके धानी चुनर, ना लटके धड़ किसानों के । ....... कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।
अब ना कोई लूट सके, इस धरा के खजानों को, अब ना कोई बाँट सके, भजनों को अजानों को। ........ कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।
तन, मन, धन संपन्न बने, जीते हर इंसान के, हो दृढ़ चरित्र हर युवा, हो उद्यम बीज सुजान रे । ........ कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।
निश्चल, निर्भय, शिक्षण हो, हर बेटी बेटे का अधिकार, कोई ना छीने अपने हक़, कांपे थर-थर भ्रष्टाचार । ........ कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।
हो अश्वमेध फिर विश्व पटल पर, भारत के अरमानों का, मिटे जाल सूद, ऋणों का, डरने और धमकाने का, ....... कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।
देख संभलकर चलना रे, ओ लोकतंत्र की सेना रे, पग-पग बैठे लूटने वाले, बनकर तोता मैना रे, ...... कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।
ना हो बेकार, तेरी मोहर, तू दिखला दे ऐसा जौहर, बन पारखी चुन ऐसा राजा रे, हो न्याय, खुशियों के नौबत बाजा रे, ........ कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।