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Written By स्मृति आदित्य

मेरा सांवला रंग

फाल्गुनी

फाल्गुनी
इतना भी सांवला नहीं था मेरा रंग
कि चढ़ जाए
मुझसे उतर कर
मेरे घरवालों के मन पर,

पर ऐसा हुआ
जब तुमने बिना कुछ कहे
घर के लोगों को समझा दिया
कि नहीं हो सकती
मेरी शादी तुमसे,

तुम अगर इतने गोरे नहीं होते
तो शायद मना नहीं करते
लेकिन सवाल होने वाले बच्चों का भी तो है,

मेरे तन का रंग
इस बार घर में नहीं फैला
वहां तो 35 बरस से बिखरा पड़ा है,
आज तक नहीं समेटा गया...

इस बार मुझसे उतर कर
मेरे रिश्तों के मन पर चढ़ा,
कुछ इस तरह कि
मुझसे अब आईना नहीं देखा जाता।
कुछ सुना तुमने?