- लाइफ स्टाइल
» - साहित्य
» - काव्य-संसार
तुम्हारी कामना-परी
संज्ञा सिंह तुम्हारी कामना-परीनहीं बन सकी मैंनहीं हो सकतीतुम्हारे इच्छित रूप-रंग की एक स्त्रीनहीं बन सकती मैंतुम्हारे जैसे तर्क-पुरुषों कीकामना-परीकविता हूँ मैंकामना-परियों सेबहुत-बहुत बड़ी होती हैंकविता-परियाँ तर्क-पुरुषों और कामना-परियों सेअलग होती है
कविता-परियों की सपनीली दुनियाजिसको नहीं सहेज सकताकोई तर्क-पुरुष, कोई धन पुरुष!कामना-परीनहीं हो सकती मैंकभी भी ऐसे लोगों के लिए!