कैसे जिंदगी की बात करें...
सुनीता घिल्डियाल (देहरादून)
गुमनाम आवाज़ों के लश्कर मेंखोई-खोई बहार है,रुठा-रुठा मौसम हैकैसा उदास मंज़र हैइसमेंतुम और मैं दीवानों की मानिंद मिलकरकैसे जिंदगी की बात करेंशहरों की बौखलाई सड़कों पेरफ़्तार में बंधा मौसम धूल और आवाज़ों का समंदरकितनी ऊब है यहां,इसमें, तुम और मैं दीवानों की मानिंद मिलकरकैसे जिंदगी की बात करें।सवेरे की सोचते हैं रह-रह केउदासियों के स्याह अंधेरेकड़कती बिजलियों का सायाकोई हमसाया तो हो नहीं सकता,ऐसे में तुम और मैं दीवानों की मानिंद मिलकरकैसे जिंदगी की बात करें...