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Written By WD

साहित्यकार प्रेमशंकर रघुवंशी नहीं रहे

साहित्यकार प्रेमशंकर रघुवंशी नहीं रहे - premshankar raghuvanshi
साहित्यकार प्रेमशंकर रघुवंशी नहीं रहे।। वे काफ़ी दिनों से बीमार थे। उनका जन्म 8 जनवरी 1936 को बैंगनिया, सिवनी मालवा तहसील, हरदा, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनकी कुछ प्रमुख कृतियां-आकार लेती यात्राएं, पहाड़ों के बीच, देखो सांप : तक्षक नाग, तुम पूरी पृथ्वी हो कविता, पकी फसल के बीच, नर्मदा की लहरों से,मांजती धुलती पतीली (सभी कविता-संग्रह), अंजुरी भर घाम, मुक्ति के शंख,सतपुड़ा के शिखरों से (गीत-संग्रह) हैं।

म.प्र.हिन्दी साहित्य सम्मलेन के सर्वोच्च सम्मान भवभूति अलंकरण से सम्मानित, वागीश्वरी पुरस्कार,म.प्र.साहित्य अकादमी के दुष्यंत पुरस्कार, बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार, म प्र. लेखक संघ के अमर आदित्य सम्मान ,आर्य भाषा संस्थान वाराणसी के आर्यकल्प पुरस्कार,आलोचना के लिए प्रमोद वर्मा पुरस्कार,दुष्यंत स्मृति संग्रहालय के सुदीर्घ साधना सम्मान से पुरस्कृत प्रेमशंकर रघुवंशी म.प्र.प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष मंडल के वरिष्ठ सदस्य थे।

छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के अनेक स्थानों पर वे हमेशा सक्रिय रहे और संगठन के लिए उन्होंने बहुत काम किया। देश भर के युवा साहित्यकारों व काव्यप्रेमियों के बीच वे अपने सरल-तरल स्वभाव और उत्कृष्ट साहित्य-सृजन के लिए बहुत लोकप्रिय रहे।(शरद कोकस) 

उनकी लोकप्रिय रचना 
हो चुका समारोह राम राम---
सतपुड़ा जब याद करे - फिर आना
आना जी नर्मदा बुलाए जब
धवल कौंच पंक्ति गीत गाएं जब
चट्टाने भीतर ही भीतर जब सीझ उठें
आना जब सुबह शाम झरनों पर रीझ उठे
छरहरी वन तुलसी गंधिल आमंत्रण दें
आना, जब झरबेरी लदालद निमंत्रण दें
महुआ की शाखें जब याद करें फिर आना
घुंघची का पानी जब दमक उठे
अंवली की सांस जब गमक उठे
सरपट पगडंडियां पुकारें जब
उठ उठकर घाटियां निहारें जब
सागुन जब सतकट संग पांवड़े बिछाए
आना, जब पंख उठा मोर किलकिलाएं
श्रद्धा नत बेलें जब याद करें , फिर आना ।।
अबकी जब आओगे सारे वन चहकेंगे
पर्वत के सतजोडे टेसू से दहकेंगे
बजा बजा सिनसिटियां नाच उठेंगे कछार
खनकेंगे वायु के नुपुर स्वर द्वार द्वार
गोखरू, पुआल, घास करमा सी झूमेंगी
वनवासी आशाएं थिरकन को चूमेगी
बदली की छैया जब याद करें
फिर आना.....