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Essay on Gautam Buddha in Hindi : महात्मा बुद्ध पर निबंध 2023

Essay on Gautam Buddha in Hindi : महात्मा बुद्ध पर निबंध 2023 - Lord Buddha Essay
budhha jayanti 2023 
 
 
 
 
 
परिचय : हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए महात्मा बुद्ध भगवान विष्णु के नौवें अवतार हैं। गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म (Buddhist Religions) के संस्थापक हैं। वे भारत में जन्म लेने वाले महानतम व्यक्ति थे। उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उन्हें गौतम बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है। 
 
हिन्दू धर्म के अनुसार वैशाख शुक्ल पूर्णिमा भगवान बुद्ध का जन्मोत्सव का दिन है। इस दिन गौतम बुद्ध की जयंती और निर्वाण दिवस दोनों ही होता है। इसी दिन उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। बैसाख या वैशाख पूर्णिमा को ही बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। 
 
जीवन (Buddha life story): भगवान गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी के यहां नेपाल के लुम्बिनी वन में हुआ। लुम्बिनी नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान है, जहां बुद्ध का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोदन था। 
 
बुद्ध के जन्म के बाद एक भविष्यवक्ता ने राजा शुद्धोदन से कहा था कि यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा, लेकिन यदि वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया तो इसे बुद्ध होने से कोई नहीं रोक सकता और इसकी ख्‍याति संसार में कायम रहेगी। उनके जन्म के 7 दिन बाद ही मां का देहांत हो गया। सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया। 
 
सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद्‌ तो पढ़े ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हांकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता। बचपन से ही सिद्धार्थ के मन में करुणा भरी थी। उससे किसी भी प्राणी का दुःख नहीं देखा जाता था। यह बात इन उदाहरणों से स्पष्ट भी होती है। 
घुड़दौड़ में जब घोड़े दौड़ते और उनके मुंह से झाग निकलने लगता तो सिद्धार्थ उन्हें थका जानकर वहीं रोक देते और जीती हुई बाजी हार जाते। खेल में भी सिद्धार्थ को खुद हार जाना पसंद था क्योंकि किसी को हराना और किसी का दुःखी होना उससे नहीं देखा जाता था। 
 
परिवार (Buddha Family) : शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का 16 वर्ष की उम्र में विवाह दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ हुआ। राजा शुद्धोदन ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया। तीन ऋतुओं के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए। वहां पर नाच-गान और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई। दास-दासी उसकी सेवा में रख दिए गए। 
 
ये सब चीजें सिद्धार्थ को संसार में बांधकर नहीं रख सकीं। उनका मन विषयों में फंसा नहीं रह सका और एक रात अपनी पत्नी यशोधरा और बेटे राहुल को देख उनके मस्तक पर हाथ रखा और धीरे से महल से बाहर निकल कर घोड़े पर सवार हो गए तथा रातोरात वे 30 योजन दूर अमोना नदी के तट, जो कि गोरखपुर के पास पड़ती थी, वहां जा पहुंचे और अपने राजसी वस्त्र उतार कर, अपने केश काटकर खुद को संन्यस्त कर दिया। और जीवनपर्यंत धम्म का प्रचार करते रहे।
 
प्रेरक प्रसंग (Prerak Prasang) : एक बार सिद्धार्थ को जंगल में किसी शिकारी द्वारा तीर से घायल हंस मिला तो उन्होंने उसे उठाकर तीर निकाला, सहलाया और पानी पिलाया। उसी समय सिद्धार्थ का चचेरा भाई देवदत्त वहां आया और कहने लगा कि यह शिकार मेरा है, मुझे दे दो। सिद्धार्थ ने हंस देने से मना कर दिया और कहा कि तुम तो इस हंस को मार रहे थे। मैंने इसे बचाया है। अब तुम्हीं बताओ कि इस पर मारने वाले का हक होना चाहिए कि बचाने वाले का? 
 
देवदत्त ने सिद्धार्थ के पिता राजा शुद्धोदन से इस बात की शिकायत की। शुद्धोदन ने सिद्धार्थ से कहा कि यह हंस तुम देवदत्त को क्यों नहीं दे देते? आखिर तीर तो उसी ने चलाया था? इस पर सिद्धार्थ ने कहा- पिताजी! यह तो बताइए कि आकाश में उड़ने वाले इस बेकसूर हंस पर तीर चलाने का ही उसे क्या अधिकार था? हंस ने देवदत्त का क्या बिगाड़ा था? फिर उसने इस पर तीर क्यों चलाया? क्यों उसने इसे घायल किया? मुझसे इस प्राणी का दुःख देखा नहीं गया। 
 
इसलिए मैंने तीर निकालकर इसकी सेवा की। इसके प्राण बचाए। हक तो इस पर मेरा ही होना चाहिए। राजा शुद्धोदन को सिद्धार्थ की बात जंच गई। उन्होंने कहा कि ठीक है तुम्हारा कहना। मारने वाले से बचाने वाला ही बड़ा है। इस पर तुम्हारा हक है।
 
महात्मा बुद्ध का महापरिनिर्वाण (buddha mahaparinirvan) : सुजाता नाम की एक महिला ने वटवृक्ष से मन्नत मांगी थी कि मुझको यदि पुत्र हुआ तो खीर का भोग लगाऊंगी। उसकी मन्नत पूरी हो गई तब वह सोने की थाल में गाय के दूध की खीर लेकर वटवृक्ष के पास पहुंची और देखा की सिद्धार्थ उस वट के नीचे बैठे तपस्या कर रहे हैं। सुजाता ने इसे अपना भाग्य समझा और सोचा कि वटदेवता साक्षात हैं तो सुजाता ने बड़े ही आदर-सत्कार के साथ सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा 'जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई है यदि आप भी किसी मनोकामना से यहां बैठे हो तो तुम्हारी भी पूर्ण होगी।'
 
वैशाखी पूर्णिमा के दिन यानी बुद्ध के जन्म और बोधी प्राप्ति वाले दिन ही भगवान बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया अर्थात् देह छोड़ दी। देह छोड़ने के पूर्व उनके अंतिम वचन थे 'अप्प दिपो भव:...सम्मासती यानी अपने दीये खुद बनो...' स्मरण करो कि तुम भी एक बुद्ध हो। अतः हिन्दुओं के लिए वैशाख पूर्णिमा का दिन पवित्र माना जाता है। यह दिन वैशाख और बुद्ध पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध है। 

budhha jayanti 2023
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