नेटफ्लिक्स, अमेजॉन या किसी भी ऐसी साइट पर जब आप कोई वेब सीरीज देखना शुरू करते हैं तो सबसे पहले जो लिखा नजर आता है वो होता है...
सेक्स, न्यूडिटी एंड ड्रग।
इसका मतलब यह डिस्क्लेमर देना है कि आपको इस फिल्म में यह सब देखने और सुनने को मिल सकता है। जैसे ही वेब सीरीज की शुरुआत होती है, वैसे ही कानों में भद्दी और नंगी गालियां सुनाई आने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
वेब सीरीज दरअसल, मनोरंजन का अब सबसे सक्रिय और लोकप्रिय साधन है। कोरोना के संकट में लॉकडाउन ने इसे और भी ज्यादा पॉपुलर बना दिया है। सबसे दुखद पहलू है कि यह बच्चों, टीनएजर्स या यूं कहें कि जो अब तक वयस्क नहीं हुए हैं उनकी पहुंच तक आ पहुंचा है।
मनोरंजन की इस नई विधा और साधन पर हम सवाल नहीं उठा रहे हैं, लेकिन इसके प्रभाव के बाद बच्चों की नई पौध में जिस भाषा का प्रादुर्भाव हो रहा है वो बेहद बड़े खतरे की घंटी है।
दरअसल, इस दौर में बच्चों के मनोरंजन की शुरुआत ही वेब सीरीज से हो रही है, मनोरंजन के उस साधन से जिसका उपयोग वयस्कों को भी हैडफोन लगाकर करना पड़ता है। वेब सीरीज का मतलब ही यह है कि इसे आप परिवार के साथ कतई नहीं देख सकते। क्योंकि उसमें इतनी गालियों, आपत्तिजनक अश्लील दृश्य और ड्रग्स लेने के दृश्य बताए गए हैं कि अकेले में भी बेहद सर्तक होकर देखना होगा।
ऐसे में जो बच्चे अपने बेडरूम में बैठकर इसका लुत्फ उठा रहे हैं, उनकी भाषा और मानसिकता आगे चलकर क्या और कैसी होगी, इसका अनुमान लगाना बेहद डरावना है।
दरअसल, कुछ साल पहले जो गालियां हमारे लिए टैबू हुआ करती थी, जो दृश्य हमारे लिए आपत्तिजनक श्रेणी में आते थे वो अब के बच्चों के लिए बहुत सामान्य बात है।
जिन मामूली आपत्तिजनक दृश्यों को हम टीवी पर देखकर चैनल बदल देते थे उनसे कहीं ज्यादा अश्लील और आपत्तिजनक दृश्यों को बच्चे अपने मोबाइल और लेपटॉप पर बड़े चाव के साथ देखते हैं।
दरअसल, यह सब इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि कुछ साल पहले बच्चों के मनोरंजन के लिए हिंदी साहित्य की कई पत्रिकाएं हुआ करती है। बच्चे उन्हीं को पढ़कर अपनी भाषा को धार देते थे। ‘नंदन और कादंबिनी’ ऐसी ही प्रतिष्ठित पत्रिकाएं थीं जिन्हें बच्चों से लेकर बड़े अपनी भाषा और आचरण के विकास के लिए पढ़ते थे।
घर के किसी भी कोने में हाथ डालो तो वहां हिंदी साहित्य की कोई न कोई पत्रिका रखी मिल जाती थी। लेकिन यह बेहद दुखद है कि हाल ही में ‘नंदन और कादंबिनी’ का प्रकाशन बंद हो गया है, उससे भी ज्यादा चिंताजनक है कि इनकी जगह अब वेब सीरीज ने ले ली है। बंद हो चुकी उन पत्रिकाओं ने हमारी भाषा को संस्कारित किया था, उस पाठन की मदद से कई लोगों ने लिखना सीखा और वे अच्छे पाठक से अच्छे लेखक भी बने, लेकिन नए जमाने की गाली-गलौज और हिंसक वेब सीरीज न सिर्फ बच्चों की नई पौध की भाषा बल्कि उनके संस्कारों को भी दूषित कर रही है।
वेब सीरीज के नए ट्रेंड में बच्चों और बच्चों की हिंदी भाषा का भविष्य क्या होगा यह एक बड़ा सवाल है।
(इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अनुभूति है, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।)