हिन्दी दिवस : अच्छा साहित्य पढ़ता कौन है?
उषाराजे सक्सेना
आज जबकि समस्त विश्व उपभोक्ता संस्कृति का समर्थक है तो भला महानगरों का साहित्यकार कैसे पीछे रह सकता है। आज का आम साहित्यकार भी एक अच्छा-खासा व्यापारी है। वह लिखने से पहले बाजार की स्टडी करता है, नीति बनाता है फिर वह वही परोसता है जिसकी बाजार में खपत है। प्रकाशक भी वही छापता है जो गरमागरम कबाब की तरह बिकता है। अच्छा खासा गठबंधन है। लेखन अब जन्मजात नहीं है। वह तकनीकी है। वह सामाजिक नहीं, बाजारी शक्ति बन चला है। अच्छा और ईमानदार साहित्य लिखा जा रहा है, पर वह मुश्किल से मिलता है। अच्छा साहित्य मिले भी तो क्यों मिले उसकी रीडरशिप कहां है? और यूं भी हिन्दी की रीडरशिप तो अब उंगलियों पर गिनी जा सकती है। सस्ती पत्रिकाओं और टेबलॉयड को छोड़ दीजिए। वह तो साहित्य के नाम पर कचरा है। अधिकांश हिन्दी लेखक भी हिन्दी पुस्तकें कम पढ़ते हैं और यदि सच कहूं तो हिन्दी लेखक भी अंगरेजी ही पड़ता है, क्योंकि अंगरेजी की खबरें ज्यादा विश्वसनीय होती हैं और वे पहले छपती हैं और किताबें भी मौलिक होती हैं, चुराने के लिए काफी आइडियाज होते हैं। वैसे यह अतिशयोक्ति नहीं है, अधिकांश अच्छी और उच्चकोटि की हिन्दी की पुस्तकें अब पुस्तकालयों तक ही सीमित रह गई हैं। सरकारी खरीददारी यानी गोदाम में पड़ा माल- क्या भविष्य है ऐसी रचनाओं का? अभी प्रगति मैदान में सजे पुस्तक मेले को देखा। देखने वाले अधिक थे, खरीदने वाले बहुत कम। अंगरेजी सेक्शन में फिर भी किताबें बिक रही थीं। हिन्दी सेक्शन में लेखकों या लेखक बनने के आतुरों की आवाजाही थी। वैसे भी हमारी सभ्यता में पुस्तकें खरीदकर पढ़ने का चलन नहीं है। मांगकर पढ़ने का है या पढ़ने का ही नहीं है। आज घरों में आदमी के रहने की जगह नहीं है तो पुस्तक कहां रखेंगे। इस महंगाई के जमाने में रद्दी में बेचने के लिए दो-ढाई सौ रुपए की पुस्तकें कौन खरीदेगा? अंगरेजी पढ़ने वाला जरा पैसे वाला है। वह ड्राइंग रूम में अपनी प्रतिष्ठा के लिए, शौक के लिए पुस्तकें रखता है। वह भी सिर्फ अंगरेजी की। बाजार में हिन्दी की किताबें बिकें या न बिकें, प्रकाशक को इससे कोई मतलब नहीं है। प्रकाशक दाम ऐसे ऊंचे रखते हैं कि जनता खरीद ही न सके, क्योंकि जो हजार-बारह सौ किताबें वे छापते हैं, वे सरकारी खाते में जाती हैं। फिर वे बिक्री बढ़ाने का प्रयास क्यों करें? किताबें पढ़ी जाएं या नहीं, यह उनका सिरदर्द नहीं है।