संस्कृत और हिंदी देश के दो भाषा रूपी स्तंभ हैं जो देश की संस्कृति, परंपरा और सभ्यता को विश्व के मंच पर बखूबी प्रस्तुत करते हैं। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं।
कतिपय प्रशंसक उनकी हौसला अफजाई करते नहीं थकते। कोई यदि गलती निकालता है तो उसे बुरा समझा जाता है। यह नहीं समझते कि वह क्यों कह रहा है, ऐसा। हिंदी भाषी तो चाहते हैं कि दुनिया के सभी लोग हिंदी बोलें, हिंदी में व्यवहार करें पर इसका यह मतलब नहीं कि ...
आजादी के बाद भारत में जो शासन व्यवस्था अपनाई गई वह है - लोकतंत्र। इस शब्द के कई समानार्थी शब्द भी उपलब्ध हैं - यथा प्रजातंत्र, जनतंत्र इत्यादि नाम कुछ भी हो, पर एक बात जो इन शब्दों में ध्वनित होती है
जब से मानव अस्तित्व में आया तब से ही भाषा का उपयोग कर रहा है चाहे वह ध्वनि के रूप में हो या सांकेतिक रूप में या अन्य किसी रूप में। भाषा हमारे लिए बोलचाल का माध्यम होती है। संप्रेषण का माध्यम होती है।
आलोचना, हिंदी, वसुधा, अक्षर पर्व, वागर्थ, आकल्प, साहित्य वैभव, परिवेश, कथा, संचेतना, संप्रेषण, कालदीर्घा, दायित्वबोध, अभिनव कदम, हंस आदि वे पत्रिकाएँ हैं, जो हिंदी भाषा की समृद्धि का प्रतीक हैं।
आज हिंदी दिवस है। आज एक बार पुन: हिंदी की महिमा का स्मृति दिवस आ पहुँचा है। हिंदी आज अपने प्रभाव से पूरे विश्व की नंबर एक भाषा बनने की ओर अग्रसर है। दुनियाभर में फैले