ओह! हाय मॉम आई एम बैक फ़्राम द स्कूल। हाऊ शुड आई टेल यू, इट वॉस ए लॉन्ग टायरिंग डे मॉम। एंड यू नो आई हेव वन टुडेज़ ‘हिन्दी डे' डिबेट कॉम्पिटिशन। ये बर्गरयुगी भाषा है दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश के युवा की।
हिन्दी और संस्कृत मिलकर संपूर्ण कम्प्यूटर-विश्व पर राज कर सकती हैं। वे इक्कीसवीं सदी की विश्वभाषा बन सकती हैं। जो भाषा कम से कम पिछले एक हजार साल से करोड़ों-अरबों लोगों द्वारा बोली जा रही है और जिसका उपयोग
त्रिभाषा-सूत्र का तीसरा सूत्र काफी खतरनाक है। अँगरेजी को अनिवार्य रूप से पढ़ाना करोड़ों बच्चों की मौलिकता को नष्ट करना है। उनके आत्मविश्वास की जड़ों को हिला देना है। उनमें हीनता का भाव भर देना है। सबसे अधिक बच्चे अँगरेजी में ही अनुत्तीर्ण
कभी ऐसा परिपूर्ण साफ़्टवेयर सुलभ हो जायेगा जो तमाम भाषाओं का परस्पर अर्थ करके अनुवादित कर जोड़ सके और त्वरित संप्रेषण भी हो तो हमारे भारत का समृद्द् भारतीय दर्शन और संस्कृति अन्य भाषाई क्षेत्रों /देशों के लोगों में फ़ैल सकेगी
‘हमारे स्कूल में हिंदी बोलना मना है। इसलिए आजकल मैं हमेशा अँग्रेजी में ही बात करती हूँ। अगर बोलने की प्रैक्टिस छूट गई तो फिर स्कूल में परेशानी आ जाएगी
तालियों की गड़गड़ाहट, शुद्ध हिन्दी में कविता पाठ, हिन्दी के भविष्य को लेकर लंबी-लंबी परिचर्चाएँ, हर वर्ष हिन्दी दिवस के दिन पूरे देश का लगभग यही माहौल रहता है। स्कूल-कॉलेजों में बच्चों के हाथों में लिखी तख्तियाँ
महात्मा गाँधी : कोई भी देश सच्चे अर्थो में तब तक स्वतंत्र नहीं है जब तक वह अपनी भाषा में नहीं बोलता। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है।
काका कालेलकर : यदि भारत में प्रजा का राज चलाना है तो वह
यहाँ आकर यह पहली भार हिन्दी से परिचित हुईं। पहली नजर के प्यार की तरह नतालिया को हिन्दी के सरस उच्चारण से प्यार हो गया...फिर क्या था वे नतालिया से नायिका बन गई....
जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ था तब हमने सोचा था कि हमारे आजाद देश में हमारी अपनी भाषा, अपनी संस्कृति होगी लेकिन यह क्या? अँग्रेजों से तो हम स्वतंत्र हो गए पर अँग्रेजी ने हमको जकड़ लिया
हिन्दी का सबसे बड़ा संकट उसे मातृभाषा के रूप में बोलने वालों द्वारा अपनी अस्मिता से न जोड़ने का है। एक चलताऊ फिकरा चलन में है कि भाषा कैसी भी हो, संप्रेषण...
हिन्दी को जन-जन की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने में हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हिन्दी को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय यूँ तो सरकारी स्तर...
मैं सड़क से गुजर रहा था तो मैंने देखा कि एक बुढ़िया जोर-जोर से रो रही थी। उसकी कराह तथा दुर्दशा को देखकर मेरा भारतीय मन संवेदनशील हो उठा। मैंने उसे सांत्वना के बहाने दो शब्द कहे तो वह फफककर रो
हिन्दी उस बाजार में ठिठकी हुई-सी खड़ी है, जहाँ कहने को सब अपने हैं, लेकिन फिर भी बेगाने से... इस बेगानेपन की टहनियों से भी उम्मीद की कोपलें फूट रही हैं। क्योंकि हिन्दी बोलने और समझने वालों की संख्या में जबर्दस्त इजाफा...
हिन्दी, भाषाई विविधता का एक ऐसा स्वरूप जिसने वर्तमान में अपनी व्यापकता में कितनी ही बोलियों और भाषाओं को सँजोया है। जिस तरह हमारी सभ्यता ने हजारों सावन और हजारों पतझड़ देखें
पर्दानशीं महिलाओं के बीच बैठकर और बोहरा समुदाय की होने के बावजूद एक महिला ने हिन्दी की जिस तरह सेवा की, वह हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रेरणादायी है। ये महिला थीं श्रीमती बानू बेन अब्बासी...
साहित्य के क्षेत्र में हो रहे सृजनात्मक कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने साहित्य अकादमी संस्था की स्थापना की। 12 मार्च 1954 में स्थापित इस संस्था की ओर से 22 भाषाओं में पुरस्कार दिया जाता