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Written By ND

धर्म का सच और सच का धर्म

समीक्षक

book review | धर्म का सच और सच का धर्म
ND
ढेर सारे तर्क और तर्कों के ऊपर तैरती परिभाषाएँ। धर्म और ईश्वर, दो ऐसे विषय हैं जिन पर अनंत तक वाद-विवाद किया जा सकता है। जो लोग धर्म या ईश्वर में आस्था नहीं रखते उनके अपने तर्क हैं और जो लोग ईश्वर को मानते हैं उनके अपने। इस सबके बावजूद असल में धर्म का स्वरूप क्या है तथा उसे जीवन में किस प्रकार व्यावहारिकता के साथ लागू करना चाहिए, इस बात से अधिकांश लोग अनभिज्ञ ही रहते हैं।

यही कारण है कि धर्म के प्रति प्रदर्शनात्मक आस्था तो बढ़ रही है लेकिन कट्टर और पक्षपाती रवैए के साथ। पुस्तक 'सच का सत्य' में ऐसे ही कई प्रश्न पाठकों के समक्ष उठाए गए हैं।

यह पुस्तक एक ओर ईश्वरीय सत्ता तथा परंपरागत मान्यताओं पर प्रश्न खड़े करती है तो धर्म तथा उससे जुड़े दिखावटी पहलुओं पर विचार करने का रास्ता भी खोलती है। दरअसल धर्म तथा ईश्वर का जो स्वरूप अधिकांश लोगों ने आज अपना रखा है, वह भ्रम के अलावा और कुछ भी नहीं। क्योंकि कोई भी धर्म पक्षपाती नहीं हो सकता, लेकिन आज के धार्मिक उन्माद में रंगे लोग इसका पक्षपाती स्वरूप ही प्रस्तुत करते हैं।

ऐसे में आवश्यक है यह जानना कि असल में तर्कयुक्त, सही धर्म का स्वरूप क्या है। लेखक धर्म और आस्था से जुड़े मुद्दों पर सवाल उठाते हैं। वहीं आध्यात्म के वैज्ञानिक रूप को भी प्रस्तुत करते हैं। लेखक प्रश्न उठाते हैं कि -'यदि पहले से ज्यादा अब धर्म की हानि हो रही है तो भगवान अब जन्म क्यों नहीं लेते? एक तरफ हम कहते हैं लाभ-हानि, जीवन-मरण, यश-अपयश, विधि के हाथ में है, तो दूसरी तरफ हमारे पास स्वतंत्रता क्या करने की बची कि हम उसे करें और पाप-पुण्य के भागी बनें।

संभवतः यह और इसी प्रकार की अन्य शंकाएँ सामान्य व्यक्ति के मन में उठती हैं पर वर्तमान में इनके समाधान के समुचित अवसर नहीं हैं। इसका प्रतिफल होता है अनुसरण की कमी तथा मात्र परंपरा का निर्वाह। ऐसे ही विभिन्न कारणों ने धर्म की उपयोगिता कम कर दी है और हालात ये हो गए हैं कि धर्म के नाम पर जितने भी लोग मारे-काटे गए हैं, उसके एकांश भी न तो ईश्वर तक पहुँच पाए, न तो ईश्वर को समझ पाए।

अतः आज जरूरत है एक निष्पक्ष भाव से पूर्ण बात पर चिन्तन-मनन और सोच-विचार करने की, बजाय बिना स्वयं परिपाटियों के प्रति आश्वस्त हुए केवल निर्वहन करते रहने के। 'पुस्तक में छोटे-छोटे पाँच अध्याय हैं जिनमें सृष्टि की संरचना से लेकर पुर्नजन्म तथा मोक्ष जैसे विषयों पर भी बात की गई है।

लेखक ने वैज्ञानिक सोच सम्मत तथा तर्कयुक्त धर्म को जानने तथा उसको समझने की बात की है। वे आध्यात्म की नई अवधारणा पर विचार की आवश्यकता दर्शाते हैं तथा तर्क पर आधारित विचारों की जरूरत को स्पष्ट करते हैं। वे ईश्वर की व्याख्या ऊर्जा के स्वरूप के तौर पर करते हैं। वे कभी न खत्म होने वाली जीवात्मा के आधार पर पुर्नजन्म की 'थ्यौरी' को समझाते हैं।

पुस्तक : सच का सत्य( आध्यात्म का वैज्ञानिक स्वरूप)
लेखक : जी. आर. दीक्षित
संपर्क स्थल : वेदांत भवन, 6-बी, संगम नगर, किला मैदान, इंदौर (म.प्र.)