कहानी संग्रह - गौरैया को तो गुस्सा नहीं आता
डॉ. दामोदर खड़से की कहानियां हमारे वास्तविक जीवन के निकट और इतनी स्वाभाविक होती हैं, कि पाठक को कभी लगता ही नहीं कि वह किसी अनबूझ मानसिकता से जूझ रहा है। इन कहानियों से आज के सारे सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, घरेलू और घर-बाहर के संदर्भ बड़ी गहराई से जुड़े हैं। मनुष्य का मनुष्य के प्रति लगाव उनकी ‘जन्मांतर गाथा’ नामक कहानी में देखा जा सकता है। इसमें परिवार के प्रति प्रेम और आस्था के बीच कर्तव्यपरायणता का बखूबी वर्णन है।
‘गंध’ नामक कहानी में ‘नॉशिया’ अर्थात् नफरत के कारण और प्रभाव का बड़ा सुंदर वर्णन है। ‘मुहाने पर’ कहानी में एक मेहनतकश ग्रामीण के शहर आने और संघर्ष की कथा है। कहानी में लेखक ने पुलिस अत्याचार, अधिकारियों के दुर्व्यवहार, गुंडों द्वारा शोषण और ठेलेवालों के संघर्ष का चित्रण मार्मिकता के साथ किया है। ‘फिरौती’, ‘साहब फिर कब आयेंगे मां!’ ऐसी ही स्थितियों की कहानियां हैं।
‘गौरैया को तो गुस्सा नहीं आता’ मनोवैज्ञानिक धरातल पर लिखी कहानी है। डॉ. दामोदर खड़से की भाषा सरल किंतु छाप छोड़ने वाली है। घटनाक्रम, वातावरण और स्थान का चित्रण वे इस खूबी से करते हैं, कि पाठक को लगता है कि वे पढ़ नहीं रहे हैं बल्कि सब कुछ घटित होता हुआ देख रहे हैं। वह सारे परिवेश का एक हिस्सा है।
पाठक चाहता है कि लेखक उसे समझे, उसे आंतरिक तृप्ति और अपने लेखन से शांति प्रदान करे। वह शाब्दिक भूल-भुलैया में भटकना नहीं चाहता। पाठक मानसिक रूप से उन रोड़ों को पार करने का मार्ग चाहता है, जो उसके मार्ग में हैं। उसकी शास्त्रीय ऋण-धन में रुचि नहीं होती।
डॉ. दामोदर खड़से उन प्रतिभाओं में से हैं, जिनके कृतित्व में मध्यवर्गीय जीवन के सुख-दुखों की सुगंध है और पाठक उनके कथा-संसार में रमकर आत्मसंतोष और सुख प्राप्त कर लेगा।
कहानी संग्रह - गौरैया को तो गुस्सा नहीं आता
लेखक - डॉ. दामोदर खड़से
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन
पृष्ठ संख्या - 184
मूल्य - 350