सूरज से सीखें जग रोशन करना
समय की प्रखरता को समर्पित रोशन कविताएँ
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रफीक विसाल मंचीय कविताओं को सुनने और पढ़ने से 'मैं' अक्सर बल्कि बेशतर दूर ही रहा हूँ...फिर भी इत्तेफाकन सुनने के मौकों से भी कभी परहेज नहीं रहा। वहीं ,कहीं किसी मंच से जगन्नाथ 'विश्व' जी को सुनना अच्छा लगा। चौराहों के कवि सम्मेलनों की कविताओं को ड्राइँग रूम में बैठकर पढ़ने का ये पहला इत्तेफाक है। मेरे लिए ये ठीक ऐसा ही अनुभव है कि जैसे किसी तेज रफ्तार कार को हाई-वे से पगडंडी पर मोड़ दिया जाए। '
सूरज से सीखें,जग रोशन करना' काव्य संग्रह की सौ से ज्यादा छंदबद्ध कविताओं को मेरे जैसे चूजी पाठक के लिए पढ़ना कठिन था। लेकिन अगर इस किताब को न पढ़ता तो इस आनंद से हमेशा वंचित ही रहता। हर कविता में एक अलग रंग और अंदाज है। जिसमें समय का वह बेलिबास सच है,जिसके लम्हों में सियासत के मुखौटाधारी समाज की वे सचाइयाँ हैं जिससे बहुत जिम्मेदार,ईमानदार व्यक्ति भी विमुख है।अपने समय को समर्पित इन कविताओं में हर बात छंदबद्ध तरीके,सलीके से कही गई है। कहीं ,किसी भी कविता में शास्त्रीयता का दिखावा नहीं है। अगर कवि मात्रा या आरोह के चक्कर में उलझता तो ये विचार इतने विनम्र, बेबाक नहीं होते। जगन्नाथ विश्व जी का हिन्दी कवि सम्मेलन के मंचों पर बरसों नहीं दशकों कब्जा रहा है। उनकी हिन्दी-मालवी और राजस्थानी में विशिष्ट पहचान रही,उनकी कविताओं में हास्य-व्यंग्य तो है लेकिन उस मजदूर का दर्द भी है जो अपनी कविताओं के माध्यम से पसीने के सम्मान का आह्वान कर रहा है। हालाँकि उनकी कविताओं की आत्मा मौजूदा जर्जर हो चुके सिस्टम के खिलाफ है। वे लोकतंत्र की हिमायत करते हुए धर्मनिरपेक्षता की उँगलियाँ थाम कर देश-समाज की प्रगति के सपने देखते हैं। यही साहस उन्हें हिन्दी के मंचीय कवियों की जमात में विशिष्ट बनाता है। पुस्तकः सूरज से सीखें जग रोशन करना(काव्य संग्रह)कविः जगन्नाथ विश्वकीमतः 150 रुपए प्रकाशकः गरिमा प्रकाशन,25 एमआईजी,हनुमान नगर,नागदा जंक्शन