मानुष : मनुष्यता को बचाने का आग्रह
पुस्तक समीक्षा
संजीव ठाकुर प्रसिद्ध चित्रकार हकु शाह से कई दिनों तक बातचीत कर युवा लेखक पीयूष दईया ने जो किताब तैयार की है, उसका नाम है 'मानुष'। साक्षात्कार पर आधारित होने के बावजूद यह किताब साक्षात्कार की शक्ल में प्रस्तुत नहीं की गई है बल्कि यह किताब हकु शाह की कहानी हकु शाह की जुबानी की शैली में प्रस्तुत की गई है। प्रश्नकर्ता यहाँ ओट में छुप गया है और हकु शाह लगातार अपने बारे में, अपने अनुभवों के बारे में, अपनी कला के बारे में, अपने जीवनदर्शन के बारे में बोलते दिखाई देते हैं। इस किताब से हकु शाह के बचपन, माता-पिता, पढ़ाई-लिखाई, जीवन-संघर्ष आदि के बारे में जानकारी मिल जाती है, बावजूद इसके इस किताब को हकु शाह की आत्मकथा नहीं कहा जा सकता। इस किताब में हकु शाह के जीवन से अधिक उनका विचार पक्ष उभर कर आया है। इस किताब में जो बात सबसे ज्यादा मुखरित हुई है, वह है 'मानुष भाव!' हकु शाह इस 'मानुष भाव' को विस्तृत और अमाप मानते हैं। उनके अनुसार, 'यह इतना बड़ा है कि इसको पकड़ पाना ही बहुत मुश्किल है।' (पृ. 67)। वैसे हकु शाह ने इस 'मानुष भाव' को विस्तृत पकड़ने की कोशिश की है। सौभाग्य की बात है कि लोकोत्तर सत्ता में विश्वास होने और जगह-जगह दार्शनिक होते चलने के बावजूद इस किताब में 'मानुष' की जो अवधारणा है उन्होंने उपस्थित की है, वह इसी लोक के 'मानुष' की है। हकु शाह आदमी को 'मशीन की माफिक' बना दिए जाने की वजह से परेशान नजर आते हैं। मनुष्यों के द्वारा अपने ऊपर पहन लिए मुखौटे को देखकर भी वे दुखी होते हैं। सत्य और आनंद को मानुषिकता के आलोक में न पाकर भी वे दुखी होते हैं। अपने सृजन में वे 'इसी विस्तृत मानवीय संवेदनशीलता को जगाना व पनपने देना' चाहते हैं। मानुष की तरह ही इस किताब में हकु शाह ने अपनी कला के बारे में बातें की हैं। बाजार को ध्यान में रखकर सृजन करने के पक्ष में वे नहीं हैं। हकु शाह चाहते हैं कि उनके चित्रों के साथ प्रेक्षकों का मौन संवाद स्थापित हो। उनके चित्र देखकर लोगों को खुशी हो। इस किताब के एक अध्याय में हकु शाह ने कला-शिक्षण से संबंध में ढेर सारी बातें की हैं। हकु शाह का जन्म गुजरात में सूरत जिले के जिस इलाके में हुआ था, वह इलाका आदिवासियों का इलाका था। हकु शाह के पिता आदिवासियों से घुले-मिले थे। सामान्य जन के प्रति हकु शाह का लगाव संभवतः इसी से हुआ था। बचपन से ही हकु शाह को कविता और चित्र में रुचि थी। उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, फिर भी उन्हें गरीबी का एहसास नहीं होता था। रंगों और कैनवास की कमी से भी वे लगातार जूझते रहते थे। बावजूद इसके कला की दुनिया में वे आगे बढ़ते रहे। यह किताब हकु शाह को जानने-समझने का मौका देती है। पुस्तक : मानुष (हकु शाह) वार्ता लेख : पीयुष दईया प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन मूल्य : 350 रुपए