प्रवाह : अनवरत बहता-छलछलाता काव्य-संग्रह
समय के हर नए बदलाव को पुकारती आकर्षक पुस्तक
ऋषि गौतम देश-दुनिया और समाज में हो रहे बदलाव और उतार-चढ़ाव आपके दिमाग को भी झंकृत करते होंगे। इसे देखकर आपके दिलो-दिमाग में भी भावनाएं उमड़ती-घुमड़ती होंगी। आपमें से कई लोगों ने उसे शब्दों में पिरोया भी होगा या शायद पिरोने की कोशिश की होगी। लेकिन शब्दों को पिरोकर उसे अपने तक रखना अलग बात है और उसे दुनिया तक लाना एक अलग बात। यहीं पर आपके साहस और जिजीविषा की परख होती है और यही बात कुछ लोगों को औरों से अलग कर देती है। '
प्रवाह' काव्य पुस्तिका इसीलिए औरों से अलग नजर आती है। इसके लेखक डॉ. रामकृष्ण सिंगी ने भी इसमें अपनी तरफ से कुछ नया करने की पूरी कोशिश की है। किसी बड़े कवि और उनकी कविताओं से अपनी तुलना न करते हुए उन्होंने बड़ी ही खूबसूरती से अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोया है। किताब में 'खामोश की जांचे जारी है','देश चल रहा है कैसे','आत्मा ही देश को सेक्यूलर बनाती है'और'मेरा कसूर क्या है'जैसी कविताओं के माध्यम से देश और समाज में हो रहे बदलावों,विरोधाभासी प्रवृत्तियों,राजनीति और प्रशासन के दो मुंहें चेहरों,घपलों-घोटालों और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर बड़ी ही बेबाकी से अपनी कलम चलाकर आम आदमी के दर्द को अपनी आवाज दी है। इसके साथ ही किताब में इन सबसे अलग समय,जीवन और प्रकृति की सुंदरता के कई और रंगों को भी छूने की कोशिश की गई है। इसमें जीवन की इच्छाओं और आकांक्षाओं के साथ-साथ मौसम के अलग-अलग रंगों और पर्व-त्योहारों में छुपी मानवता और आत्मीयता को भी बड़े ही प्यार से उकेरा गया है। साथ में होली और विजयादशमी जैसे पर्वों के माध्यम से कई मुद्दों पर कटाक्ष भी किया गया है। इस किताब में आपको किसी और कवि के कविता की तरह वह गहराई और उतरा-चढ़ाव मिले न मिले लेकिन इसकी हर एक कविता में आपको अपने दिल की आवाज अवश्य सुनाई देगी। इसकी यही खासियत इसे पठनीय बनाती है। पुस्तक- प्रवाह (कविता संग्रह) कवि- डॉ.रामकृष्ण सिंगीप्रकाशक - डॉ.रामकृष्ण सिंगी/सुशील प्रकाशन महू कीमत : (अंकित नहीं)