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Written By WD

चलती चाकी : कश्मीर के बिगड़ते हालात का चित्रण

कश्मीर की भयावहता से रूबरू होता उपन्यास

Book Review | चलती चाकी : कश्मीर के बिगड़ते हालात का चित्रण
शरद सिंह
ND
यदि किसी उपन्यास का कथानक साहित्य और पत्रकारिता के मिले जुले भाव से पिरोया गया हो तो उसकी उपादेयता दूनी हो जाती है। ऐसी स्थिति में उस उपन्यास में सच और कल्पना का इतना सुंदर घालमेल होता है कि पढ़ने वाला स्वयं को उस सच्चाई के बहुत करीब पाता है और कई-कई बार सिहर उठता है।

सूर्यनाथ सिंह के नवीनतम उपन्यास 'चलती चाकी" में यह विशेषता बड़ी ही सहज ढंग से व्याप्त है। सूर्यनाथ सिंह का साहित्यकार होने के साथ-साथ पत्रकार होना इस कथानक को अधिक विश्लेषणात्मक बनाता है। उनका दृष्टिकोण मूल घटना और उस घटना के दूर-दूर तक पड़ने वाले प्रभाव उजागर करने में सक्षम है।

कश्मीर की समस्या सर्वविदित है। सभी जानते हैं कि वहां का अमन-चैन छिन चुका है लेकिन बहुत कुछ ऐसा है जिसे लोग बहुत ही सरसरी तौर पर जानते हैं। जैसे, वहां आम आदमी का जीवन कितना असुरक्षित है, वहां औरतों पर क्या बीत रही है या फिर वहां कोई भी व्यक्ति कभी भी किसी अलगाववादी आतंकी या किसी पुलिसिया आतंकी के हत्थे चढ़ सकता है।

कश्मीर में आतंक की चाकी चल रही है और लोग दो पाटों के बीच पिस रहे हैं। उपन्यास का नायक श्वेतानंद पुलिसिया आतंकियों का शिकार बनता है। उसे दहशतगर्द ठहराते हुए गिरफ्तार करके पुलिस चौकी लाया जाता है। जहां पुलिस के भ्रष्ट और कू्र कर्मचारी श्वेतानंद को मुस्लिम दहशतगर्द बनाने के लिए उसका खतना तक कर देते हैं।

उस दृश्य की भयावहता का वर्णन करते हुए लेखक ने लिखा है कि 'श्वेतानंद खून में लिथड़े दर्द से तिलमिलाते-छटपटाते रहे। कोठरी में बीमार-सा पीला एक बल्ब जल रहा था। बड़ी तोंद वाला एक सिपाही जो थानेदार को गिलास भर के दे रहा था, लड़खड़ाते हुए उठा। डंडा उठाया और ताबड़तोड़ श्वेतानंद पर बरसाने लगा।' यह दृश्य सोचने को विवश करता है कि जहां पुरुष सुरक्षित नहीं है वहां स्त्रियों की क्या दशा होगी?

'इंशा अल्ला, सूरते-हाल पहले से बदली है, मगर खौफ से निजात कहां मिल पाई है। हमारी खातूनें महफूज नहीं हैं साहब। पहले दहशतगर्द उठा ले जाते थे, अब फौज वाले मनमानी करते हैं,' अनंतनाग का परचूनवाला हाफिज सईद श्वेतानंद को बताता है।

जहां हिंसा और प्रतिशोध की बात आती है तो सबसे पहला शिकार बनती हैं स्त्रियां और न्याय व्यवस्था घटना घट जाने के बाद की भूमिका जांच और आयोग के रूप में दिखाई पड़ती है। चाहे गुजरात दंगे हों या शोपिया कांड स्त्रियों की अस्मत और उनके जीवन से खिलवाड़ करने के घिनौने खेल बार-बार खेले जाते हैं।

यह उपन्यास पढ़ते हुए वह घटना बरबस ही याद आ जाती है जिसमें शोपिया जिले से दो स्त्रियां लापता हो गई थीं। उन स्त्रियों की लाश ही पुलिस को मिली। दोनों की हत्या के कारणों का पता लगाने के लिए जांच आयोग गठित किया गया। जांच आयोग ने पाया कि दोनों के साथ बलात्कार किया गया था और फिर उनकी हत्या कर दी गई थी। जिसमें स्थानीय पुलिस का हाथ पाया गया।

सूर्यनाथ सिंह ने कश्मीर की समस्या के साइड इफैक्टस बड़े ही विश्लेषणात्मक ढंग से सामने रखे हैं। कश्मीर की वर्तमान दशा और आमजनता के समीकरण समझाने में यह उपन्यास पूरी तरह सफल रहा है। इस उपन्यास में वर्णित कई घटनाएं पहली बार पढ़ने में ही मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।

यह कहा जा सकता है कि यदि किसी को कश्मीर समस्या के गहन प्रभाव जांचने हों तो उसे 'चलती चाकी' अवश्य पढ़ना चाहिए। ज्वलंत विषय के साथ ही भाषा एवं शैलीगत प्रवाह के कारण उपन्यास में अंत तक मन लगा रहता है। घटनाएं, पात्रों और उनकी मानसिकताओं का यथावत चित्रण प्रभावी बन पड़ा है।

पुस्तक : चलती चाकी
लेखक : सूर्यनाथ सिंह
प्रकाशक : सामयिक प्रकाशन
मूल्य : 395 रुपए